आज तक सँभाल कर रखा-मीरा द्विवेदी

*साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन भाग 07
विधा      - संस्‍मरण
विषय     - "ऐसा पत्र जो आपने आज तक सँभाल कर रखा हो।"
आयोजन संचालक - किरण बाला चंडीगढ़



सन् 1978 की बात है।मैने इलाहाबाद बोर्ड संस्था के अन्तर्गत हाईस्कूल की परीक्षा दी थी।उस वक्त आज की तरह नम्बर नहीं मिलते थे, वो भी आर्ट वर्ग में। प्रथम श्रेणी तो जिले में दो- चार ही पाते थे। प्रथम श्रेणी में जो उत्तीर्ण होता था, लोग उससे मिलने आते थे।आस -पास के क्षेत्र में उसकी मिसाल पेश की जाती थी।
    मुझे पढ़ने का बहुत शौक था, पर गंभीरता न के बराबर थी।जब परीक्षा काल निकट आया, तो मै सोच-सोचकर परेशान थी,कि क्या मुझे अपना अनुक्रमांक याद हो पायेगा।इतना नही सोच पा रही थी कि प्रवेश-पत्र तो साथ होगा ही।अनुक्रमांक याद करने की क्या आवश्यकता। यह क्या? प्रवेश-पत्र मिलते ही आश्चर्य का ठिकाना न रहा।मेरा अनुक्रमांक था - 222222   . हुआ न आश्चर्य आपको भी। सभी कहने लगे अनुक्रमांक तो बहुत अच्छा है।रिजल्ट या तो बहुत अच्छा होगा, या फिर एकदम खराब।
       परीक्षा निकट आई,सम्पन्न हुई और रिजल्ट घोषित का दिन भी आ गया।उन दिनों अखबार में रिजल्ट घोषित होता था।किसी को मुझसे अनुक्रमांक पूँछने की आवश्यकता ही नहीं थी।जबान पर जो चढ़ा था।रिजल्ट देखा गया।मै प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई थी।सभी बहुत खुश। मेरे ऊपर कोई असर ही नहीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। सब पूर्ववत चलने लगा।विद्यालय खुलने का इंतजार होने लगा। तभी विद्यालय से प्रधानाचार्य जी का पत्र आया, जिसने संशय में डाल दिया कि विद्यालय से पत्र क्यों? 
      पत्र खोला गया। आश्चर्य पर आश्चर्य!  कारण.....पत्र में मुझे अपने सेंटर में टॉप करने की बधाई और सम्मानित करने का संदेश लिखित था। मुझे खुशी पर खुशी मिल रही थी।इस अपार प्रसन्नता का संदेश देने वाले पत्र को मैं कैसे विस्मृत कर सकती हूँ।
   
स्वरचित-मीरा द्विवेदी वर्षा
हरदोई, उत्तर प्रदेश।



 



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