नही झुकेगा शीश माँ तेरा हम हैं तेरे रखवाले,
मिट्टी के कण-कण से निकले आजादी के मतवाले।
धरती चाहे दहक रही हो,
नीलाम्बर भी हो धधकता।
अरुण रश्मि भी निगल गईं हों,
रत्नाकर की शीतलता ।
कितना भी पथरीला पथ हो,
तुम उससे न घबड़ाना ।
बढ़ते जाओ आगे - आगे,
गाते राग मधुर तराना ।
अनंत शक्तियाँ तुझमें हैं माँ; हम भी तेरे हवाले,
मिट्टी के कण-कण से निकले आजादी के मतवाले ।
गर्म हवा के झोंकों की,
हमको है कोई परवाह नही।
बर्फ हथौड़े से लगते,
उससे भी कोई आह नही।
तोपों से यदि आग बरसती,
उसका भी कोई घाव नही।
अरि पर वार किया है डटकर,
पीछे से कोई रार नही ।
बल-पौरूष से भरे माँ बच्चे; हम हैं तेरे परवाने ।
मिट्टी के कण-कण से निकले आजादी के मतवाले।
चीरहरण करने को आतुर,
दुश्मन यदि घर में आया ।
तूफानों से टकराकर भी ,
हमने उसको है ललकारा ।
धूल चटा दी मिनटों में ,
सीने पर भी वार किया ।
सुनी दहाड़ जब शेरों की,
दामन बचा कर भाग गया।
शौर्य गाथाएं गूँज रही माँ; हम हैं तेरे मस्ताने ।
मिट्टी के कण-कण से निकले आजादी के मतवाले।
वीर सुभाष, आजाद, भगतसिंह,
श्रेष्ठ मौन, अविराम बढ़े ।
देश की खातिर प्राणाहुति दे,
सबके सब बलिदान हुए ।
न खाने की इच्छा तुममें ,
न ही कुछ पीने की ।
आजादी की खातिर ही,
ललक थी मर मिटने की।
कीर्ति पताका फहर रही माँ; हम हैं तेरे दीवाने ।
मिट्टी के कण-कण से निकले आजादी के मतवाले।
रचयिता-मीरा द्विवेदी "वर्षा"
हरदोई, उत्तर प्रदेश ।
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