आज़ादी के वे मतवाले थे,
जो हँसते-हँसते सब सहते थे।
अपने देश की मिट्टी से,
बेपनाह मोहब्बत करते थे।
आज़ादी के वे मतवाले थे,
जन्मभूमि की महत्ता समझते थे।
देश के लिए ही जन्मे थे,
इसके लिए ही मर मिटे।
आज़ादी के वे मतवाले थे,
अपनी फ़िक्र कहाँ करते थे?
देश की आज़ादी के जुनून में,
जान की परवाह भी कब करते थे?
आज़ादी के वे मतवाले थे,
धरती के वीर सपूत थे।
दुश्मनों के ज़ुल्मों के आगे,
घुटने कभी न उन्होंने टेके।
आज़ादी के थे वे मतवाले,
किया नहीं वतन दुष्टों के हवाले।
अपनी बलि चढ़ाने वाले ,
थे आज़ादी के दीवाने।
-सीमा रानी मिश्रा
हिसार, हरियाणा
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