अंगदान-मुस्कान बच्चानी

जानका‍री



किसी जीवित या मृत व्यक्ति के शरीर का अंगदान करना महादान कहलाता है।कई ऐसे देवात्मा होते हैं, जो जीते जी तो मनुष्य जीवन सार्थक करते हैं ,मरने के बाद भी अपना पूरा शरीर दान करते हैं।ऐसे व्यक्ति अमर हो जाते हैं। अमर होना कोई अमृत पीने से नहीं होता। यह कर्मों से होता है।वह मरने के बाद भी दुआएं पाते हैं। जिनको किसी भी तरह का अंग उनसे प्राप्त होता है ,तो वे हर पल उनको दुआएं देते हैं।
जिंदा रहते हुए इंसान 2 में से अपनी एक किडनी दान कर सकता है। लीवर का एक छोटा सा हिस्सा दान कर सकता है। मैंने देखा लीवर का एक छोटा सा हिस्सा एक बेटे ने पिता को देकर पिता की जान बचाई।इंसानियत कभी मरती नहीं है। बस ऊपर जो धूल चढ़ी है उसे हटाना है। 18 साल से 65 साल तक की उम्र में अंगदान करना बेहतर माना जाता है। वैसे उम्र की कोई सीमा नहीं होती है।
समय
किडनी--12 घंटे के अंदर
लगस-4 के अंदर
लीवर- 2 घंटे
आंखें-- 3 दिनों
विश्व अंगदान दिवस 13 अगस्त को मनाया जाता है।
       "अंगदान करना होता,        सबसे अच्छा दान
       बच्च  सकते हैं इसके द्वारा,  कितनों के प्राण।"
शरीर का दाह संस्कार नहीं होगा तो आत्मा को शांति कैसे मिलेगी ।यह सब के मन में प्रश्न उठता है।लेकिन अब धीरे-धीरे सोच बदल रही है। यह मैंने खुद देखा।जब किसी केअंधकार भरे जीवन में आशा की किरण आती है ,तो वह कितने खुश होते हैं।
जो अंग दान करते हैं। जहां जिंदगी खत्म होती है।उनकी तो फिर से वहीं से शुरुआत हो जाती है।मर कर भी जिंदा रहती हैं।
एक व्यक्ति 9 लोगों को जीवन दान दे सकता है।


मुस्कान बच्चानी
बिलासपुर छत्तीसगढ़



 






 


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