अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
महिलाओंको अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के साथ अपनी शक्ति को पहचानना होगा। महिलाएं किसी भी क्षेत्र में अपने आपको कमजोर नहीं समझे। महिला सशक्तिकरण के लिए सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। आज जरूरत है बालिकाओं को हम उन्हे आत्मविश्वास और हिम्मत दें जो लड़कों को देते हैं। महिलाएं अपने अंदर की शक्ति को जागृत करें, ताकि वह हर विकृत मानसिकता का सामना साहस और धीरज से कर सके।महिलाएं शक्ति का प्रतीक है। बाल विवाह की रोकथाम के प्रयास काफ़ी सफल रहे , आज हमें सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश के लिए प्रयास करने होंगे। देश में महिलाओं की आत्महत्याओं के प्रकरणों की रोकथाम व घरेलू हिंसा पर अंकुश लगाना होगा ।महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों के प्रति सचेत रहना चाहिए। महिला समाज एवं परिवार के विकास की धुरी है।उन्हें अपनी सुरक्षा के हर क़ानून की जानकारी होनी चाहिए।
महिलाओं के सम्पति अधिकार, महिलाओं के घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, महिलाओं को उनके अधिकारों भरण पोषण के अधिकारों की जानकारी हासिल करनी चाहिए !महिलाओं के राजनीतिक, आर्थिक सशक्तीकरण ने उनके सामाजिक सशक्तीकरण में खासा योगदान दिया है. भारतीय संविधान की अपेक्षाओं के अनुरूप महिलाएं मुख्यधारा में मौजूद हैं और देश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए कृतसंकल्पित भी हैं।समाज शास्त्रियों और अन्य जानकारों ने इस ओर ध्यान दिलाते हुए चिंता व्यक्त की है जो उचित जान पड़ती है उनका कहना कि वर्तमान में महिला सशक्तीकरण का मामला केवल आर्थिक सशक्तीकरण और राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति तक सीमित रह गया है जबकि इसका क्षेत्र कहीं अधिक व्यापक और सुचिंतित होना चाहिए । हर क्षेत्रों में नारी का सम्मान होना चाहिये ।
आज भी हमारे सामने पीड़ित महिलाओं के उदाहरणों में कमी नही है। समाचार पत्र, समाचार चैनल, वेब चैनल, रेप, दहेज़ के लिए हत्या, भ्रूण हत्या की घटनाओं से भरे पड़े मिलते हैं, इन आंकड़ों में दिन व दिन बढ़ोतरी हो रही है। महिलाओं से होने वाली हिंसा और शोषण की घटनाएं खत्म होने का नाम नही ले रही। आज हर क्षेत्र में पुरुष के साथ ही महिलाएं भी तमाम चुनौतियों से लड़ रही हैं, सामना कर रही हैं, कई क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि समाज के कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता वाले तत्व यह मानने के लिए तैयार नही हैं कि महिलाएं भी उनकी बराबरी करें, ऐसे लोग महिलाओं की खुले विचार वाली कार्य शैली को बर्दाशत नही कर पाते हैं।
सवाल पुरुष और महिलाओं के अलग होने का नही है, न ही महिलाओं को कमतर आंकने का, सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर देश की आधी आबादी का यूं ही अनदेखा किया जाएगा, उनका शोषण किया जाएगा, ऐसे में उनके बिना समाज का विकास कैसे संभव है। जबकि महिला और पुरुष दोनों हो समाज की धुरी हैं, एक को कमजोर करके संतुलित विकास हो ही नही सकता। जब तक देश की आधी आबादी सशक्त नही होगी हम विकास की कल्पना भी नही कर सकते। समय की मांग है और समाज की जरूरत भी कि महिलाओं को भी पुरुषों के सामान अधिकार मिले, उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें।
महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ क्या है? सशक्तिकरण के साथ यह भी जानकारी होना चाहिए कि हम कहीं सशक्तिकरण के नाम पर अराजकता तो नही फैला रहे हैं। कहीं हम समाज में प्रचलित रीति-रिवाज और प्रथाओं का उलंघन तो नही कर रहे। हम नारी स्वतंत्रता का गलत फायदा तो नही उठा रहे। कहीं हमे गलती फहमी तो नही हैं कि सशक्त होने का मतलब ही मन-मर्जी से जीना और सामाजिक रीतियों को तोड़कर अपनी अच्छी-बुरी हर ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। अब समय आ गया है हम इसकी वास्तविक परिभाषा को समझें और सशक्त बने। सरल शब्दों में परिभाषित करें तो हम यह कह सकते हैं कि महिलाओं को अपनी जिंदगी के हर छोटे-बड़े हर काम का खुद निर्णय लेने की क्षमता होना ही सशक्तिकरण है।
संविधान, सरकार से लेकर सामाजिक संगठन तक में महिला सशक्तिकरण की बात तो होती है लेकिन महिला सशक्त नही हो पाई है। यह सत्य है कि महिला सशक्तिकरण तब तक संभव नही जब तक हमारे समाज के पुरुष प्रधान रवैये की में यह सोच पैदा न हो जाये कि महिला भी पुरुष से कम नही है साथ ही महिलाओं को भी अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा और अपनी कार्यक्षमता से अपनी शक्ति का, खुद के सशक्त होने का परिचय देना होगा। महिलाओं को दिखाना होगा की नारी सिर्फ भोग की वस्तु नही है बल्कि वह भी समाज का अहम हिस्सा है। महिलाओं को जागना होगा और दिखाना होगा की वह लाचार नही है उसे लाचार बनाया गया है। अब जागरूकता की परम आवश्यकता है, नारी को खुद को पहचानने की, अपने-आप को जानने की जरूरत है। अपने विकास, उन्नति, प्रगति समृद्धि और अधिकारों के लिए नारी हर पल चौकन्ना रहें, जागरूक बने
इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की सोच भी तुम्हे गई बदलना है, खुद को स्थापित करना है और साबित करना है कि हम भी पुरुषों से कम नही, बल्कि हम एक कदम आगे हैं। यह दिखाना होगा करके दिखाना होगा, अपना लोहा खुद मनवाना होगा,
र्षों से महिलाओं को चार दिवारी के अंदर कैद रखने और उसे शोषित करने की जो धारणा है, जो सोच है उसे पूरी तरह से दफन कर जागरूकता की ज्योति जलाकर एक नए सुन्दर समाज की स्थापना करना है। एक तरफ देवियों की पूजा अर्चना की जाती है तो दूसरी तरफ महिलाओं से दोयम दर्जे का व्यवहार कर भेदभाव किया जाता है। क्या यही महिला सशक्तिकरण है। नही, बिल्कुल नही यह सिर्फ छल है इस छल से बाहर आना होगा, महिलाओं को अपने-आप को खुद की शक्तियों को पहचानना होगा और आगे बढऩा होगा
नोट -
महिला सशक्तिकरण वह महिलाओं को परिवार व समाज को बेहतर संचालित करने की शक्त देना है न की परिवार के विघटन और वह बुजुर्गों का अपमान बच्चों को आया के भरोसे ,गृहकलह और मनमानी करने का नाम कदापि न समझे आज महिलाएँ कही प्रताड़ित है तो कहीं प्रताड़ित क़र भी रही है यह मैंने बेहद क़रीब से देखा है आज लड़के शादी के नाम पर भयभीत हैं , शादी नहीं करना चाहते हैं कारण लड़कियों का अपनी मनमानी , घर के प्रति लापरवाही और तलाक़ में मोटी रक़म ऐंठने का जो चलन बड़ी तेज़ी से पनप रहा है । वह कल उन्हीं को पीड़ा दायक होगा ।महिला सशक्तीकरण का मतलब समाज को सही दिशा और दशा का संतुलन बनाना अपना और परिवार समाज का बेहतर भविष्य बनाना होना चाहिए ।
डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई से
0 टिप्पणियाँ