*साहित्य सरोज साप्ताहिक लेखन भाग 06
विधा - स्वतंन्त्र
आयोजन संचालक - किरण बाला चंडीगढ़
शीर्षक - बालिका सशक्तिकरण समय की माँग
अब न्याय हो,बस न्याय हो,
अन्याय का प्रतिकार हो।
बस अब और नहीं वहशीपन,
जीवन में सभ्यता का सार हो।
चहुँओर निशाचर घूम रहे हैं,
मानो मदिरा पीकर झूम रहे हैं,
इनकी उच्श्रृंखलता पर समाज में,
कोई अंकुश तो एक बार हो।
उन्मुक्त अभिलाषा पर हो,
मर्यादा का बंधन लगा हुआ,
हृदय का निलय संस्कारों की,
पूँजी से हो सजा हुआ।
जीवन में सादगी और,
शालीनता का दीप जलता रहे,
बेटियों का अस्तित्व जग में,
सुरक्षित सदा पलता रहे,
कुत्सित मानसिकता का,
अब सही उपचार हो,
मनुष्य के संयम,विवेक का
तनिक और विस्तार हो।
हे नारी शस्त्र उठा ले तू,
कब तक अबला कहलाएगी?
चंडी,काली,और ज्वाला बन,
तभी आत्मरक्षा कर पायेगी।
तेरे तन पर तेरा ही,
एकमात्र अधिकार हो,
तेरे स्वप्नों,आकांक्षाओं का,
प्रति क्षण न बलात्कार हो।
ये अश्रु तेरे स्वाभिमान की,
रक्षा करने में असमर्थ हैं,
तेरे अतिरिक्त न और कोई
सम्मान को बचाने में समर्थ है।
यह कलियुग है, इस कलयुग में,
कान्हा मिलने दुर्लभ है ,
यहाँ सम्मान मिलना दुष्कर,
अपमान सर्वत्र, सुलभ है।
तेरे अंतर्मन में ही हे नारी,
गोविंद का अवतार हो ।
जो तू स्वयं रक्षा करे ,
तो बंद यह व्यभिचार हो।
नारी सुलभ कोमलता,
शालीनता को त्यागकर,
इंदु सी शीतल न बन,
स्वयं को रवि सी आग कर,
वासना की यह अनल,
बन गई है देखो दावानल,
त्राहि-त्राहि अस्मिता कराह उठी,
नारी क्रंदन का है कोलाहल,
मन की निर्बलता से लड़ने को
मन से अब तू तैयार हो ,
असुरों के बलिष्ठ तन पर,
असँख्य तेरे वार हो।
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
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