भूली बिसरी यादें,जो आज भी चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं-प्रीति चौधरी

 


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 मेरी बड़ी बहन और मेरा विवाह एक ही माह में, एक दिन के समयांतराल से संपन्न हुआ था।विवाह की भागदौड़ और आयोजन की भीड़ -भाड़ में आराम का तनिक भी समय नहीं मिला। जिस कारण मुझे नींद बहुत आती थी ।ससुराल में भी जब महिलाएँ मुँह दिखाई की रस्म के लिए आती थी, तो मेरी पलकें नींद के बोझ से बंद होने लगती थी। मैं कई बार चेहरा धोकर, तैयार होकर बैठती थी। किंतु कभी- कभी अपनी नींद के कारण मुझे उपहास का पात्र बनना पड़ता था।यह किस्सा तो ससुराल का है।


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दूसरी घटना जिसे मुझे अधिक शर्मसार किया, वो यह थी कि जब मैं मायके जाने के लिए नहाने स्नानागार में गयी तो  मेरे होंठ पर ततैया ने काट लिया।जब हम मायके जाने के लिए रवाना हुए,तब चेहरे पर सूजन थोड़ी कम थी। जब मैं  मायके पहुँच गई तो होंठ के साथ-साथ चेहरे पर भी सूजन थी। मम्मी जी पापा जी और भाइयों ने चेहरा देखकर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं की। किंतु भाभी कहाँ पीछा छोड़ने वाली थी ?उन्होंने कहा "दीदी कम से कम कुछ तो सब्र से काम लिया होता... अपना चेहरा देखिए... भाई साहब ने आपको क्या प्रेम निशानी दी है?... "मैं उनसे बार-बार मना करती रही अपनी बेगुनाही का स्पष्टीकरण देती रही..किंतु जो भी मेरी सखी, भाभी घर आतीं मेरा मुखमंडल देखकर  उनके चेहरे पर अर्थपूर्ण मुस्कान दौड़ जाती। और वे भाँति- भाँति के प्रश्न मुझसे पूछतीं रहीं। आज भी यह भूली बिसरी बात बरबस ही मुझे स्मरण हो आती है।


प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश



 



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