क्षितिज में सूर्य अस्त हो चुका है। शांत वेग से पवन चल रही है। सुगंधा चुपचाप आराम कुर्सी पर बैठी है ।हवा का झोंका बार-बार अपनी उपस्थिति से उसे परिचित करा देता है ।कभी उसके गालों पर बिखरी जुल्फों को छेड़कर, तो कभी उसकी साड़ी के आंचल को को लहरा कर। सुगंधा की धड़कनें बहुत तेज चल रही हैं ।घड़ी की सुइयां बार-बार प्रतीक्षा के पलों को अपनी आवाज से और भी बेचैनी से भर देती हैं। तभी डोरबेल बजती है सुगंधा विद्युत गति से दरवाजा खोलती है ।सामने पोस्टमैन को देखकर निराश हो जाती है ।हवा की दस्तक भी उसे अपनी बेटी गुड़िया के आने की आहट सी प्रतीत होती है ।सुबह जब कॉलेज के लिए गई थी तो कितने उत्साह से भरी हुई थी ।आज उसका डिबेट कंपटीशन था। विषय था "बेटियां घर से बाहर कितनी सुरक्षित हैं" सुगंधा ने गुड़िया के कॉलेज में भी फोन करके मालूम किया तो पता चला कि कंपटीशन 1:00 बजे समाप्त हो गया था। और सभी बालक बालिका अपने घर जा चुके हैं। वह कई बार साहिल से बात करने की असफल कोशिश कर चुकी है। किंतु वह टूर पर गये हुए है, तो उनसे सम्पर्क नहीं हो पा रहा है। बहुत प्रयास के बाद बैल गई ,तो हर बार की तरह साहिल सुगंधा पर कटाक्ष करने लगा " सुगंधा तुम बेवजह इतनी चिंता करती हो हमारी गुड़िया पढ़ रही है ।तुम्हारी तरह अंगूठा छाप नहीं है। तुम क्या जानो पढ़ाई लिखाई से संबंधित कितने काम करने होते हैं उसे ?तुम बस अपनी चूल्हे- चौके, बर्तन से मतलब रखो "सुगंधा कहती ही रह गई कि "फोन मत रखना पहले मेरी पूरी बात सुन लो" किंतु उसके शब्द गले में ही अटक गए। साहिल के पास कभी उसकी बातें सुनने के लिए समय ही नहीं होता था ।
वह एक पढ़ा-लिखा यूनिवर्सिटी टॉपर ,और कहां सुगंधा मैट्रिक पास। कहां वह फलक का चांद, कहां सुगंधा टूटा हुआ तारा ।कहां वह गौर वर्ण सुंदर युवक, कहां सुगन्धा सांवली सलोनी लड़की। कभी वह गुड़िया को देर रात घर से बाहर जाने पर टोकती ,तो गुड़िया रोष भरे स्वर में कह देती "आप ज्यादा मत सोचा करो मेरे विषय में मम्मा, मैं आधुनिक लड़की हूँ। अपना अच्छा- बुरा भली भाँति समझतीं हूँ।आप तो बस यह सोचो कि शाम के खाने में क्या बनाओगी"बाप बेटी का यह तिरस्कार पूर्ण व्यवहार सुगन्धा को अच्छा नहीं लगता था।
रात ऐसे ही बेचैनी में गुजर गई। सुबह मिसेज वर्मा मिठाई के डिब्बे के साथ नववर्ष की मुबारकबाद देने आई। सुगन्धा रात भर सो नहीं सकी थी। उसकी सूजी हुई आंखें, और उदास चेहरा उसकी रात भर की पीड़ा को बयान कर रहा था। वह अपने मन का दुख छुपाती हुई मिसेज वर्मा से बोली" आपको भी नव वर्ष की अनंत शुभकामनाएं "तभी एक अनजान नंबर से फोन सुगंधा के मोबाइल पर बज उठता है। वह फोन उठा लेती है उधर से कड़क आवाज सुनाई देती है" गुड़िया के घर से बात कर रही हैं, आपकी बेटी सिटी पार्क के सामने बेहोश स्थिति में मिली है। मैं इंस्पेक्टर गरिमा बोल रही हूं। आप जल्दी ही सिटी हॉस्पिटल आ जाइए। आपकी बेटी को होश आ गया है। हमने उसका बयान ले लिया है। और उसकी मेडिकल जांच कराने के उसके साथ रेप की पुष्टि हुई है। सुगन्धा के हाथ कांपने लगे। उसके हाथ से मोबाइल गिर गया। भरी सर्दी में उसके माथे पर पसीना आ गया। उसका चेहरा एकदम से सूरजमुखी की तरह पीला हो गया। जिस बात से वह डरती थी वहीं घटना उसकी बेटी के साथ घटित हो गई।
सुगंधा हॉस्पिटल में पहुंचती है। डॉक्टर से बात करके उसे यह तथ्य भी ज्ञात होता है गुड़िया के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी गई हैं ।वह आँसुओ को रोकने का असफल प्रयास करती है ।बार-बार उसे एक प्रश्न कचोटता है, कि यह कैसा नववर्ष है? क्या नया है इस नए साल में ?वही पुरानी पीड़ा... वही दुख ....वही शारीरिक और मानसिक शोषण.... वही करुण क्रंदन.... वहीं सड़कों पर रोते बिलखते अर्धनग्न तन..वही वासना से घूरती निगाहें ...वही पढ़ा लिखा होने का दंभ भरने वाले असभ्य और जाहिल व्यक्ति ...जो पैरों तले रौंद कर रख देते हैं मासूम कलियों को।इंस्पेक्टर गरिमा साहिल को भी फ़ोन कर चुकीं थीं। वह भी अपना व्यावसायिक टूर केंसिल करके 2 घण्टे में हॉस्पिटल पहुँच जाता है।
अपनी बेटी की दुर्दशा देखकर उसे भी अपनी भूल का एहसास होता है। वह समझ जाता है कि उसकी पत्नी मात्र पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में उससे कम है, किन्तु जीवन की समझ उसे कहीं अधिक है। बेटियों को घर से ही अधिक स्वतंत्रता नहीं देनी चाहिए। क्योंकि अत्यधिक स्वतन्त्रता उच्श्रृंखलता का रूप धर लेती है। जब पति ही पत्नी की बातों को अर्थहीन समझने लगता है तो फिर बच्चे भी माँ की सलाह और मशवरों को महत्व नहीं देते हैं।आज सुगंधा एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहाँ एक ओर आधुनिकता के रंग में रँगी हुई युवा पीढ़ी है, दूसरी ओर उसकी पुरातन सोच।एक ओर दुराचारी समाज है जो बेटियों की अस्मत को पैरों तले रौंदते हैं, दूसरी ओर नवरात्रि में कन्या पूजन का ढोंग करने वाले पाखंडी व्यक्ति...
प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
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