संस्मरण
यह किस्सा मेरे बचपन का है आज भी याद आता है तो बहुत हंसी आती है अपनी नादानी पर। जैसे ही हमारी गर्मी की छुट्टियां शुरू होती थी तो हम सहपरिवार गांव चले जाते थे छुट्टियां बिताने। वाह हमारे दादा दादी और ताऊ जी का पूरा परिवार साथ ही में रहता था तो सभी के साथ रहने में बड़ा मजा आता था और एक वजह यह थी हमारे गांव का आम का बगीचा। जहां विविध प्रकार के आमों की प्रजाति थी वह रसीले आम आज भी याद आते हैं तो मुंह में पानी आ जाता है यह किस्सा उसी आम के बगीचे से जुड़ा हुआ है 1 दिन की बात है मैं और मेरे ताऊ जी की बेटी अपने बगीचे में आम चुन रहे थे हमारे बगीचे के पड़ोस में ही वहां के ठाकुर जी का बगीचा था। पता नहीं उस दिन हम दोनों को क्या सूझी की हम दोनों अपने बगीचे के आम छोड़कर ठाकुर जी के बगीचे में चले गए और आम तोड़ने लगे। ठाकुर जी का मकान बगीचे से ज्यादा दूर नहीं था उनके बेटे ने हमें यह सब करते दूर से देख लिया था वह वही दूर से चिल्लाते हुए हमारी तरफ भागने लगा और बोल रहा था रुको तुम लोग कौन हो, बताता हूं अभी आकर हमारा ध्यान जब इस बात पर गया तो हम जो वहां से भागे वह दौड़ता हुआ हमारे तरफ आने लगा। बचपना था हमारा, हम क्या करते कुछ समझ ही नहीं आ रहा था अच्छा था पास में बुआ जी का घर था हम दोनों भागते - भागते बुआ जी के घर आ गए वह आदमी भी हमारे पीछे पीछे वहां आ गया और बहुत बुरा भला कहने लगा कि अपना बगीचा होकर भी यह लड़कियां हमारे बगीचे से आम तोड़ रही थी। तब बुआ ने उस आदमी को बहुत समझाया भैया जाने दो ना छोटी बच्चियां हैं नादान है गलती हो गई माफ कर दो इन्हें तब जाकर वह आदमी माना और वहां से चला गया उसके जाने के बाद हम बाहर आई। अब भी पैर थर थर कांपे रहे थे तब बुआ ने समझाया बेटा ऐसा कभी नहीं करना यह गांव है यहां तो किसी के आम जामुन को देखने पर भी बवाल हो जाता है और अपने घर में तो इतना बड़ा बगीचा है आम का फिर भी तुम दोनों ठाकुर जी के आम तोड़ने क्यों गई। दोबारा ऐसा नहीं करना बचपन का यह किस्सा जब भी याद आता है तो हल्की सी हंसी चेहरे पर आ ही जाती है अपनी नादानी पर।
कंचन जायसवाल
नागपुर, महाराष्ट्र
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