निःसंदेह शरीर निरोग हो तो ही ख़ुशियों को भोगा जा सकता है। संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम, अच्छी नींद स्वस्थ रहने के लिए अति आवश्यक है। किंतु यदि हम किसी प्रकार के तनाव में रहते हैं तो उसका प्रभाव केवल हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसे भी नकारा नहीं जा सकता। इसके साथ ही क्रोध भी भीतर ही भीतर हमें खोखला करते जाता है।गुस्सा एकभावनात्मक प्रतिक्रिया है, जिसे नियंत्रित किया जा सकता है।इससे अलग तनाव भी एक प्रतिक्रिया है, लेकिन अलग-अलग कारकों की वजह से तनाव हो सकता है, जिन्हें आप आसानी से नियंत्रित नहीं कर सकते।
क्रोध के कारण बुद्धि - विवेक का क्षय होता है।आप जिस पर क्रोध करते हैं उसके साथ संबंध तो बिगड़ता ही है, आपका स्वास्थ्य भी बिगड़ता है। क्रोध के कारण भी मनुष्य तनावग्रस्त हो जाता है। यदि आपका मन शांत नहीं होगा तो किसी कार्य में मन नहीं लगेगा,चिड़चिड़ापन में किए गए कार्य से कभी मनोनुकूल परिणाम की आशा नहीं कर सकते। जब मनोनुकूल परिणाम नहीं मिलेगा तो खाना- पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा। आप ठीक से नहीं खाएँगे, तनावग्रस्त रहेंगे तो स्वाभाविक है इसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव ही पड़ेगा।तनाव होने से हृदय-गति, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।कई तत्वों से तनाव का स्तर बढ़ जाता है जैसेचीनी, कैफीन, अतिरिक्त आहार, निकोटिन। आप ख़ुशनुमा माहौल में भी ख़ुश नहीं रहते।हैं।क्रोध व तनाव जैसी नकारात्मक भावनाएं मनुष्य को रोगों का शिकार बना देती हैं और मनुष्य की आयु सीमा को कम कर देती हैं। क्रोध व तनाव में रहने वाला मनुष्य जाने -अनजाने अपना ही अहित करता है।
ऐसी नकारात्मकताओं से बचने के लिए यह आवश्यक है कि आप सामाजिक बनें, लोगों से मिलें, अपने परिवार के साथ अच्छे से मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहें। नशीले पदार्थों से सदा दूर रहें। अपने मनोभावों को अपने मित्रों के साथ, अपनों के साथ साँझा करते रहें। सकारात्मक भाव प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को न केवल सार्थक बनाने में सहायता करती है अपितु उसके स्वास्थ्य के लिए भी हितकर है।
-सीमा रानी मिश्रा
हिसार, हरियाणा
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