मुक्तक काव्य
आन बसों धरती पर माँ तुम ,
संग खुशी धर खान भवानी।
मानुष राह निहार थके अब ,
पावन है नव रात सुहानी ।
मन्दिर सुंदर रौनक शोभित ,
दीप जले जग में अब मैया।
देर करो मत ध्यान धरो अब ,
आकर लाज बचा जगरानी।।
आन बसों ...
आसन छोड़ उठा कर भालन,
दानव दूर भगा अब माता।
प्रेम भरो अब जन के अंतस,
जीवन में नव रंग समाता।
थाम चले पथ सत्य सदा सब,
हो अहसास सभी मन जागे।
त्याग ,घृणा हर मानव जीवन ,
प्रीत भरे नव भाव जगाता।।
आसन छोड़ ....
नवरात्रि नव रूप धरे माँ ,
आदिशक्ति, माँ दुर्ग भवानी ।
माँ के हर रूप लगे मनोहर ,
जैसे अद्भुत अमिट कहानी।।
प्रथमा शैल पुत्री माँ साजे ,
सुंदर मोहिनी रूप कुमारी ।
ब्रम्हचारणी माँ ज्ञान बाँटे,
है कुँवार नवरात्र सुहानी।।
नवरात्रि नव रूप....
पुष्पा ग़जपाल "पीहू"
महासमुंद(छ. ग.)
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