महामारी में स्त्री: जीवन और संघर्ष -डॉ अनुराधा कुमारी

युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं की हालत में महिलाएं और बच्चे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। दुनिया भर में महामारी का रूप कोरोना वायरस भी इसका अपवाद नहीं है ।भारत में लॉकडाउन के वजह से महिलाओं पर दबाव है यह बात अलग है कि इसकी चपेट में आने वाले में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की तादाद ज्यादा है लेकिन इस बीमारी के महामारी में बदलने से भारतीय परिवार में अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावित है तो वह महिलाएं ही हैं। लॉकडाउन के दौरान पति व बच्चों के चौबीसों घंटों घर पर रहने की वजह से उन पर काम का बोझ पहले के मुकाबले बढ़ गया है अब उनको कामवाली के तमाम काम भी संभालने पड़ते हैं। नौकरी पेशा महिलाओं की मुश्किलें भी कम नहीं है अब उनको एक और घर से काम करना पड़ता है और दूसरी और घर का भी काम करना पड़ रहा है।
लॉकडाउन क्या है? लॉकडाउन एक प्रशासनिक आदेश होता है। लॉकडाउन को एपिडमिक डीजीज एक्ट, 1897 के तहत लागू किया जाता है। ये अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है। इस अधिनियम का इस्तेमाल किसी विकराल समस्या के दौरान होता है। जब केंद्र या राज्य सरकार को ये विश्वास हो जाए कि कोई गंभीर बीमारी देश या राज्य में आ चुकी है और सभी नागरिकों तक पहुंच रही है तो केंद्र व राज्य सरकार सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक स्तर पर एक-दूसरे से दूरी बनाना) को क्रियान्वित करने के लिये इस अधिनियम को लागू कर सकते हैं। इसे किसी आपदा के समय शासकीय रूप से लागू किया जाता है। इसमें लोगों से घर में रहने का आह्वान और अनुरोध किया जाता है। इसमें ज़रूरी सेवाओं के अलावा सारी सेवाएं बंद कर दी जाती हैं। कार्यालय, दुकानें, फैक्टरियाँ और परिवहन सुविधा सब बंद कर दी जाती है। जहाँ संभव हो वहाँ कर्मचारियों को घर से काम करने के लिये कहा जाता है। लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सेवाएँ निर्बाध रूप से चलती रहती हैं। अपने दिशा-निर्देश में सरकार ने शासकीय आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया है।
कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित स्पेन से खबरें आईं कि कुछ महिलाओं ने घरेलू यातना से बचने के लिये खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप स्पेन की सरकार को लॉकडाउन के कड़े नियमों के बावजूद महिलाओं के लिये ढील बरतनी पड़ी। इस वैश्विक संकट के दौर में जहाँ एक ओर अफ्रीका व पश्चिम एशिया में गृहयुद्ध से जूझ रहे देशों में भी संयुक्त राष्ट्र महासचिव के युद्धविराम की अपील का असर तो दिखाई दे रहा है, परंतु वहीं दूसरी ओर इन देशों में भी महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी जा रही है। इतना ही नहीं सभ्यता व शिष्टाचार के शिखर पर होने का दावा करने वाले पश्चिमी दुनिया के देशों में भी घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी का हालिया सर्वे बताता है कि लॉकडाउन की वजह से भारत में कम से कम 12 से 13 करोड़ लोगों की नौकरियां मई महीने की शुरुआत में ही जा चुकी हैं। नौकरियाँ जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है क्योंकि लाकडाउन खत्म होने के बाद भी वायरस के तेज प्रसार के वजह से व्यवसायिक संस्थानों में काम शुरू होता नहीं दिख रहा है । ऐसे में कोरोना वायरस दुनिया को किस हाल में छोड़ेगा यह फिलहाल बताना मुश्किल है लेकिन इस संकट का नकारात्मक असर भारत के कामगार तब के की लैंगिक समानता पर पड़ना शुरू हो चुका है।
कई शोधार्थी बता चुके हैं कि काम करने वाली महिलाओं की संख्या में भारी कमी आ सकती है। इस रिपोर्ट के अनुसार कई देशों में सबसे ज्यादा कटौती विशेषतः सेवा प्रधान क्षेत्रों जैसे रिटेल हॉस्पिटेलिटी, पर्यटन आदि से जुड़ी नौकरियों में देखी गई है इन क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व ज्यादा है। लेकिन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में स्थिति इससे भी खराब है वहां 70 फीसदी महिलाएं और संगठित क्षेत्रों में काम करती हैं जहां उनके पास नौकरियां बचाए रखने के विकल्प बेहद कम है। महिलाओं के लिए आगे की राह मुश्किल है भारत में गांव से आने वाली महिलाएं दिल्ली मुंबई लुधियाना और बेंगलुरु जैसे शहरों में प्रतिदिन या मासिक तनख्वाह पर काम करती हैअक्सर इन महिलाओं और नौकरी प्रदाता के बीच किसी तरह का कानूनी करार या पंजीकरण नहीं होता है। ऐसे में लॉकडाउन लगने के बाद कुछ इस वर्ग की महिलाएं शहरों में गुजारा करती रही लेकिन आखिरकार उन्हें अपने गांव की ओर रुख करना पड़ा।
महिलाओं की नौकरियां जाने से घरेलू हिंसा भी बढ़ गई है पूर्ण संकट के दौरान पुरुष घर पर है और पुलिस व्यस्त इन वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा में पहले से कई गुना बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। दुनिया के 90 देशों में कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से करीब 400 करोड़ लोग अपने घरों में कैद हो गए, यह एक सुरक्षात्मक उपाय तो है लेकिन इसकी वजह से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैंकोविड-19 के संक्रमण से पहले भी हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती रही है। संयुक्त राष्ट्र महिला द्वारा अप्रैल 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 12 महीनों में 15 से 49 आयु वर्ग की 24.3 करोड़ महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर के द्वारा यौन या शारीरिक हिंसा की शिकार हुई हैं साल 2017 में दुनिया भर में 87000 महिलाओं की गैर इरादतन हत्या हुई है इनमें से अधिकांश अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई है। यूएन वीमेन का कहना है कि महिलाओं के प्रति हिंसा के कारण दुनिया भर में लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के नुकसान का अनुमान लगाया गया था और अगर और अगर कोविड-19 के संक्रमण के दौरान घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों को नहीं रोका गया तो यह महामारी के आर्थिक प्रभाव को और भी बढ़ाएगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यह महामारी महिलाओं के समाज में बराबरी हासिल करने के दशकों पुराने संघर्ष पर पानी फेर सकती हैं। रिपोर्ट कहती है कि इस महामारी के दौरान महिलाओं के अनपेड वर्क यानी बिना पैसे वाले काम में बेपनाह बढ़ोतरी हुई है। दुनिया भर से जो आंकड़े आए हैं उसे पता चलता है कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद से महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा और खास तौर पर घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए हैं महिलाओं के लिए काम करने वाले कई सामाजिक संस्थाओं का आकलन है कि भारत में भी घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग भी स्वीकार करता है।
लाकडाउन से पहले तक हमीरपुर की एक महिला कामगार के रूप में काम करते थे उनके पति एक शर्ट फैक्ट्री में काम करते थे "लेकिन फिलहाल हम दोनों घर पर हैं अगर मैं मना करने की हिम्मत करती हूं वह मुझे मारता है मेडिकल स्टोर हमारे घर से बहुत दूर है और वह कंडोम खरीदने के लिए नहीं जा सकता है क्योंकि पुलिस रास्ते में पूछती है कि वह किस काम से कहां जा रहा है। अब हमारी आशा जी भी अक्सर नहीं आती है" प्रियंका अपने पति और परिवार के बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहती है उनके पति को शराब की लत भी नहीं है। ऐसी कहानी बहुत सारी महिलाओं की है लेकिन केवल अशिक्षित घर हो या शिक्षा की कमी से ही नहीं हो रहा है बल्कि उच्च शिक्षित घरों में घरेलू हिंसा हो रही है।
हाल ही में एमबीबीएस डॉक्टर से शिकायत मिली थी जिसे उसके घर में बंद कर दिया गया और ड्यूटी के लिए बाहर नहीं जाने दिया गया। पुलिस का पूरा ध्यान अभी कोविङ-19 पर केंद्रित है और घरेलू हिंसा के मामले आवश्यक सेवाओं के दायरे में नहीं आते हैं अगर हमारे देश की 49 फीसदी आबादी के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाएगा उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जाएगी तो हम किस दिशा में जा रहे हैं? यही वजह है कि महिलाओं का एक हिस्सा ऐसा भी है जो पुलिस से मदद लेने के बजाय हिंसा बर्दाश्त करना बेहतर समझता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि दुनिया में कोरोनावायरस कोविड-19 के लगातार बढ़ते हुए संक्रमण का महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिसके कारण उनके प्रति मौजूद सामाजिक असमानता काफी बढ़ गया है ।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कोविड-19 के प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि इस महामारी के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य से लेकर उनकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर काफी बुरा असर पड़ा है महिलाओं के खिलाफ हिंसा भी काफी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में जुटी हुई महिला और उनसे जुड़े हुए संगठनों की भूमिका के महत्व को समझना होगा महिलाओं के भविष्य को केंद्र में रखकर सामाजिक और आर्थिक नीतियां बनाई जानी चाहिए इसका परिणाम बेहतर होगा और सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी। भारत में महिलाओं के प्रति होने वाले घरेलू हिंसा से निपटने के लिए पहले कदम के तौर पर यह आवश्यक होगा कि पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने के स्थान पर पुरुषों को समाधान का भाग बनाया जाए। मर्दानगी की भावना को स्वस्थ मायनों में बढ़ावा देने और पुराने घिसी -पिटी धैर्य से छुटकारा पाना अनिवार्य होगाभारत सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को संसद से पारित कराया है।
इस कानून में निहित प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए यह समझना जरूरी है कि पीड़ित कौन है? यदि आप एक महिला है और रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनियम के तहत पीड़ित हैं। भारत सरकार ने वन स्टॉप सेंटर जैसी योजना प्रारंभ की है जिनका उद्देश्य हिंसा के शिकार महिलाओं की सहायता के लिए चिकित्सीय कानूनी और मनोवैज्ञानिक सेवाओं की एकीकृत रेंज तक उनकी पहुंच को सुगम व सुनिश्चित करता है। महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए वोग इंडिया ने लड़के रुलाते नहीं अभियान चलाया ।जबकि वैश्विक मानव अधिकार संगठन ने ब्रेकथ्र द्वारा घरेलू हिंसा के खिलाफ बेल बजाओ अभियान चलाया गया यह दोनों ही अभियान महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा से निपटने के लिए निजी स्तर पर किए गए शानदार प्रयास थे।
घरेलू हिंसा से निपटने के लिए पुलिस की अलग विंग बनाने की आवश्यकता है इस कार्य में सिविल डिफेंस में कारक लोगों की सहायता ली जा सकती है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद के लिए 15 से अधिक गैर सरकारी संगठनों कि एक टास्क फोर्स बनाने का निर्णय लिया है ताकि महिलाओं की जरूरत के हिसाब से मदद की जा सके। इन सभी प्रयासों के द्वारा महिलाओं की स्थिति सुधारी जा सकती है साथ में यह भी आवश्यकता है पुरुष और महिला दोनों ही मिलकर इस महामारी में एक दूसरे का साथ दें। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस समस्या बड़ी तो है पर इसका निदान और समाधान असंभव नहीं है जब हम साथ -साथ चलें तो समस्या का समाधान भी बहुत ही जल्द होगा।

संदर्भ
बीबीसी की रिपोर्ट।
महिला आयोग की रिपोर्ट
दैनिक जागरण समाचार पत्र
यू एन ओ की रिपोर्ट। 

डॉ अनुराधा कुमारी
सहायक शिक्षिका ,प्राथमिक विद्यालय कारोवीर ,भदौरा ,गाज़ीपुर



 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ