"मंगला कितनी बार कहा की सामने नही आया करो शिल्पा को लड़के वाले देखने आ रहे हैं।"उसकी पड़ोसन जिसे वो बड़ी दीदी समझती थी ने (वैसे मंगला का एक बेटे के सिवा कोई नही था,प्यार की भूखी मंगला सबसे मुस्कुरा कर बात करती व मदद करती)नाराज़गी भरे लहज़े में बोली,तो मंगला ने सिर झुका लिया, बोली कुछ नही अपने घर आ गई सोचने लगी ,"अरे फेशियल करने को परसो बुलाई थी तो परेशानी नही थी, सारा मार्केटिंग कर मैं लाई तो भी ठीक था ,अभी अचानक ऐसा..?
मंगला आकर्षक व्यक्तित्व की मालकिन सबकी मदद करने वाली कोई आधी रात को भी आवाज़ लगाए तो वो बेझिझक मदद को तैयार हो जाती थी। उसका अपना ब्यूटी पार्लर था अच्छी कमाई हो जाती थी बेटा भी इंजीनियरिंग करके नौकरी कर रहा था सुंदर सुशील आकर्षक नौजवान।हालाँकि उसकी कई सहेलियां उसीसे मंगल कार्य में अपनी बेटी और बहू का मेकअप कराती थी, ये भी कहती कि तेरा हाथ शुभ है ,फ़िर ये कैसे हो सकता है कि वही मंगला किसी के लिए शुभ और किसी के लिए अशुभ हो जाये।उसके पति की मौत गत वर्ष से हो गई थी। क्या बीमारी थी पता ही नहीं चला।रात को सोए ठीक ठाक सुबह निर्जीव मिले।प्राइवेट नौकरी
थी कंपनी ने ज़्यादा पैसा नहीं दिया।जो मिला उसने बेटे को पढ़ाने में लगा दिया।"विभोर उठो थोड़ी पढ़ाई कर लो"मंगला ने बेटे को आवाज़ दी और स्वयं मंदिर में दिया जलाने चली गई।दिया जला के आई बेटे के सिर पर हाथ रखकर कहने लगी "बेटा कितनी बार बोला मैंने शाम को नहीं..... अरे तुम्हारा तो सिर गरम है।"माथे को सहलाते हुए वो बोली।"माँ गला, छाती और शरीर में बहुत दर्द है..!" बेटे की काँपती हुई आवाज़ में ऐसी बात सुन कर मंगला दहल गई" हे माता रानी ये क्या हुआ कहीं इसे कोरोना तो.... ना ना भगवान मुझपर इतना जुल्म न करो"मन ही मन प्रार्थना करने लगी ।
आस -पास दो तीन लोग कोरोना की चपेट में आ गए थे जो बचे नहीं। रात-भर बेटे के सिर पर पानी की पट्टी देती रही बीच- बीच में नींबू ,पानी और तुलसी का काढ़ा पिलाती रही किन्तु कोई असर नहीं।बार -बार उसकी आँखें किसी बवंडर की तरह भर आतीं पोछती फ़िर धुँधली हो जातीं कई अनहोनी बातें सामने आ के डराती "माँ मैं तुम्हारे साथ रहूँगा माँ !" पलक थोड़ी सी झपकी ही थी कि ऐसा लगा विभोर को कोई खींच रहा है , झटके से उठी चारो ओर देखा कमरे में एक उदास ख़ामोशी के सिवा कुछ नही था।उसके बाद उसकी आँख झपकी भी नही मंगला ने सोचा था इस बार नवरात्रि में वैष्णव देवी जायेगी वही रह कर पूजा करेगी किन्तु अब क्या जाएगी। सोंचते -सोंचते सुबह हो गई घर की झाड़ पोछ कर के बेटे का कपड़ा बदली,कुछ खिलाना चाहा तो उसने मना कर दिया किसी तरह गिला चावल दो चार चम्मच खिला कर दवा दिया तो बेटे को नींद आ गई।ख़ुद भी नहा कर माँ की तस्वीर के सामने बैठ गई तस्वीर को देखते ही उसकी आँखें भर आईं और छलकने लगीं "मानो पूछने लगी कब तक माँ ! कब तक मैं ही, मेरे ही साथ ऐसा ।" अचानक बेटा खाँसने लगा दौड़ी बेटे के पास गई । तवे की तरह शरीर तप रहा था।छाती पकड़े बेटा उसकी ओर देख रहा था चौदह पंद्रह दिन हो गया कोई आराम नही। सोचने लगी..
"माँ अब नहीं बचूँगा ,मैं जान गया हूँ मुझे कोरोना है। जो मेरे फेफड़े को जकड़ लिया है, सांस नही लिया जाता गले में कांटा चुभ रहा है,मुझे छोड़ दो माँ मेरे पास मत आओ, तुम्हे भी हो जाएगा माँ...!" उसने आँखें बंद कर ली मंगला दहल गई 'हे भगवान ये क्या बोल रहा है ,क्या करूँ मैं ,बावली हो गई याद आया उसकी एक दीदी हैं जो सबकी मदद करती हैं ,उन्हें दिव्य शक्तियाँ भी प्राप्त है।उनको वीडियो कॉल लगाया संयोग से उन्होंने फोन उठा लिया।बेटे को दिखाया उनका आशीर्वाद लिया मंदिर में दिया जलाया फ़िर झगड़ने लगी देवी माँ से " क्यों तुली हो सर्वनाश करने को एक को (पति)लिया नअब इसे भी लोगी, मुझे ले लो ना ,लेना ही है तो, उस बच्चे को क्यों... उसने तो अभी दुनिया भी नही देखी।"रोये जा रही थी बोले जा रही थी आँखें बंद ..."माँ ,माँ...!" ये आवाज़ मंगला के बेटे की थी आँसू पोछती बेटे के पास गई "हाँ बेटे बोलो... कैसा लग रहा है?" अपनी आवाज़ को संतुलित करके बोली वो।
"मुझे खिचड़ी दो न भूख लगी है।"कई दिनों के बाद बेटे की आवाज़ सुन उसे विश्वास नहीं हो रहा था.." ला... लाती हूँ बेटा अभी लाती हूँ...!"ईश्वर का नाम लेकर वो बेटे के लिये खिचड़ी बना कर लाई।कृपा थी माता रानी की बेटा धीरे-धीरे खाने लगा ,कई दिनों की बेहोशी के बाद बच्चा धीरे -धीरे सामान्य होने लगा! मंगला ने दीदी को फ़ोन लगा , उनको धन्यवाद दिया ।दस दिन बाद रामनवमी थी पूजा की तैयारी आरम्भ हो गई । नवरात्रि के पहले दिन उसका बेटा बोला" माँ मैं प्लाज्मा दान करना चाहता हूँ ताकि जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं उन्हें जीवनदान मील सके!""मुझे गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो, अवश्य चलो हम दोनों चलेंगे!"मंगला ने बेटे को प्यार से चूमते हुए कहा "लेकिन माँ तुम तो पूजा की तैयारी कर रही हो !"बेटा बोला "बेटा ये पूजा तो नवरात्रि अर्थात रामनवमी से भी बड़ी पूजा है चलो कहीं देर न हो जाये....!"
इन्दु उपाध्याय
पटना, बिहार
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