स्नेह-प्रीति चौधरी

स्नेह उर का अवर्णित भाव है,

 स्नेह अगाध प्रेम,या लगाव है।

 स्नेह की होती कोई परिभाषा नहीं,

 बिन इसके जीवन में आशा नहीं ।

 

स्नेह प्रिय के लिए प्रेम गीत है,

 समर्पण और निष्ठा का संगीत है।

 स्नेह ग्रीष्म में मलय समीर है,

 हृदय की अदृश्य कोई पीर है।

 

 स्नेह सरिता की मानो कल कल है,

 प्यास तृप्ति में सक्षम प्रतिपल है।

 स्नेह पाश में मनुज व्याकुल है,

 प्रियदर्शन को प्रतिक्षण आकुल है।

 

 स्नेह सुगंधित जैसे मधुबन है,

 पुष्पों से आच्छादित उपवन है,

 स्नेह हृदय का उज्जवल दर्पण है,

 एक चुंबकीय     आकर्षण है।

 

  स्नेह माँ का ममत्व और दुलार है,

 पिता का वात्सल्य और प्यार है,

  भाई - बहन का मनुहार है,

 रक्षाबंधन का पावन त्यौहार है।

 

 स्नेह आत्मा से आत्मा का बंधन है,

आदर और मान का अभिनंदन है,

 स्नेह हृदय की अनकही प्रीत है,

 प्रियतमा, साथी और मीत है।

 

 स्नेह का आकलन दुष्कर है,

 असीमित धरा,विशाल अंबर है,

स्नेह का कोई रूप रंग नहीं ,

इसके बिना जीवन में तरंग नहीं।

 

 स्नेह उम्मीदों का चिराग है,

 हृदयों में सुलगती ठंडी आग है।

स्नेह त्याग और बलिदान है,

भौतिक सुखों से वैराग है।

 

स्नेह सीप का जैसे मोती है,

स्नेह बिन सृष्टि रोती है।

स्नेह जीवन का अलंकार है,

सादगी से पूर्ण अद्भुत श्रंगार है।

 

स्नेह गंगाजल सा पावन है,

प्रेम पूरित मेघ या सावन है,

स्नेह पानी में जलता दिया है,

प्रेम रोगी,उपासक, पिया है।

 

प्रीति चौधरी "मनोरमा"

जनपद बुलन्दशहर

उत्तरप्रदेश

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