तत्कालीन परिस्थितियों में रोजगार की उपलब्धता -निशा

ऐसी विकट परिस्थिति दूसरे विश्व युद्ध के बाद भी शायद नहीं हुई थी , जैसी परिस्थितियों से आज दोचार होना पड़ रहा है ।   आज महामारी के चलते जैसे पूरा विश्व ही जस की तस खड़ा है । सब कुछ बन्द, आखिर जीवन बचना जो जरूरी है । आज निर्माण, कल कारखाने, बड़े बड़े संस्थान, स्कूल, कॉलेज सब बंद। छोटे छोटे मजदूर रोजमर्रा की जरूरत पूरी करने वाले बेरोजगार हुए बैठे हैं, ऐसे में रोज़गार की उपलब्धता क्या हो सकती है ? सूचना प्रद्योगिकी,स्कूल महाविद्यालय , और वो ही क्षेत्र जो संचार माध्यम से अपना कार्य कर सकें बस वो ही अपने को इस विकट समय में जिंदा रखने में समर्थ रहे । इसमें भी लोगो को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा क्योंकि आवक कम होने से सभी को अपने खर्चों में कमी करनी पड़ी । अपने  जिन संस्थानों के कार्यालय किराए पर थे उन्होंने अपने कार्यालय छोड़ दिये और घर से काम को प्राथमिकता देते हुए कार्यरत रहे । इससे बीमारी से भी बचे रहने की कोशिश क़ामयाब की और कार्य भी सुचारू रूप से चलाए ।  आज धीरे धीरे संस्थान खुलने लगे हैं, बीमारी पर अभी नियंत्रण नहीं हुआ फिर भी बचाव करते हुए सभी अपने कार्यों पर जाने का जोख़िम ले रहे हैं ।घरेलू कार्य सहायक भी धीरे धीरे अपने कामों पर बुलाये जा रहें हैं ,बिगड़ी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की सभी हर संभव कोशिश कर रहें हैं मगर फिर भी सभी इस महामारी से शंका ग्रस्त हैं । 



निशा "अतुल्य" देहरादून




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