उड़ान-अलका


फ़र्श से अर्श तक गढ़ना चाहती हूँ इतिहास
लम्बी उड़ान भर छूना चाहती हूँ आकास !!


मेरे नयनों ने बचपन से सपना पाला हैं
चाँद पर जा चाँद को छूने की हसरत पाली है !!


हर रात लम्बी लम्बी उड़ान भरती हूँ!
फिर सुबह धराशायी हो जाती हूँ !!


मेरी उड़ान तरह तरह से मुझे कभी डराती
कभी हिम्मत बँधाती है !!


कभी सपने में उड़ान कहती है उठ हौसलों की दंबगाई दिखा
नारी समाज का आग़ाज़ बन करिश्मा दिखा !!


मेरे सपने ही मुझमें उड़ने का अदम्य हौसला भरते है !
घर परिवार तो हर वक्त नारी होने का एहसास कराते है !!


अब मैं डरती नहीं खूब उड़ती हूँ
पंखों को फैला कर उड़ती फिरती हूँ !!


कभी कभी मुझे अपने उड़ने पर आश्चर्य होता है
बिना पंख मैंने कैसे उड़ान भर ली मंजिल पाली !!


अब मुझमें उड़ने का कौशल आ गया है !
अब हर स्त्री को मैं उड़ना सिखा रही हूँ !!


उनके अंदर नारी होने का साहस भरती हूँ !
सपने पूरे करने की उड़ान भरने की कला सिखाती हूँ !!


अब मेरी उड़ान की कलाबाज़ियों ने सारे डर भगा दिये !
हर जगह अब खुली आँखों से उड़ान भरती हूँ !!


फ़र्श से अर्श तक कमाल कर दिया !
सपनों को सकार किया उड़ानों को हौसला दिया !!



डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई



 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ