उसने कहा था- मीरा

*साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन भाग 07
विधा      - लघुकथा
शीर्षक-   उसने कहा था
आयोजन संचालक - किरण बाला चंडीगढ़


कुछ फुरसत के क्षण मिल जाते हैं। माधवी अब सभी कार्य करने के बाद कुछ समय आराम करने को पा जाती थी।बच्चे जो अब बड़े हो गए थे। अब वो तीसरी- चौथी कक्षा से काफी ऊपर आ चुके थे।अभी तक माधवी ही घर पर पढ़ाती थी।       ग्यारहवीं कक्षा में आयी कृतिका विद्यालय से आकर कोचिंग सेंटर चली जाती थी।माधवी निश्चिंत हो यही पूछ लेती थी, पढ़ाई कैसी चल रही है? ठीक है माँ.....इतना सुन माधवी अपने काम में लग जाती।
        इधर कृतिका परीक्षा नजदीक आते परेशान रहने लगी।माँ से भी कुछ नहीं कह पाती थी। ....कारण उसने सहेलियों के साथ की वजह से विज्ञान वर्ग के विषय ले लिए थे, जबकि गणित विषय उसका काफी कमजोर था। माधवी तो पहले ही स्वयं की रुचि ध्यान में रखकर विषय चयन की बात कह चुकी थी।अतः कृतिका को एक तरफ माँ की नाराजगी का डर, तो दूसरी तरफ परीक्षा में फेल होने का डर सता रहा था।डर की वजह से भी वह पढ़ाई में पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी। निराशा से भरी कृतिका न ठीक से सो पाती, न वो अच्छे से खाना खाती। धीरे-धीरे वह कमजोर होने लगी।
     कृतिका की मनःस्थिति से अनजान माधवी सोच में पड़ गई... क्या कारण है कि मेरी बेटी कमजोर होती जा रही। पूछने पर बेटी अपनी परेशानी कैसे कहे,क्योंकि माँ तुरन्त सवाल करेगी... किसने कहा था विज्ञान वर्ग के विषय लेने को?  'उसने कहा था ' ऐसा कहकर माँ से छुटकारा नहीं पाया जा सकता था। नाम क्या है?अवश्य पूछेंगी।नाम बताने पर मेरी सखियों को बेवजह माँ की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा,जबकि उनका कोई दोष नहीं था।मैंने तो उनका साथ चाहा था।
      अचानक शाम को पति रोहन को घर आया देख कर माधवी खुशी के मारे रोहन से लिपट गई। बेटी कृतिका भी लिपट कर रोने लगी।रोहन समझा काफी समय बाद अचानक आ गया,यही वजह है।ये तो खुशी के आँसू हैं....पर ये तो उसके अंदर की व्यथा है,जो आँसू बनकर बह रहे हैं।
       अरे मेरा बच्चा! तू तो बड़ी कमजोर हो गई है खाना नही खाती क्या? सहानुभूति पा कृतिका जोर-जोर से सिसकने लगी।अब तो माधवी, रोहन दोनों चिंतित हो पूछने लगे। पिता की दुलारी बेटी पापा का संबल पाकर अपनी परेशानी बता दी।
       बस इतनी सी बात, अरे कल मै चलूँगा .....प्रधानाचार्य से बात कर विषय बदलवा दूँगा।अरे बेटा तुम इतनी परेशान थीं। माँ से बात करतीं। वह तुम्हारी माँ हैं.....'उसने कहा था' सिर्फ इस वाक्य के  डर से तुम इतना परेशान रहीं।अब कृतिका का सारा बोझ दूर हो गया था।वह खुशी-खुशी पहले की तरह रहने लगी।
        
स्वरचित-मीरा द्विवेदी "वर्षा"
हरदोई, उत्तर प्रदेश।


 



 



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