उसने कहा था-प्रीति चौधरी

*साहित्‍य सरोज साप्‍ताहिक लेखन भाग 06
विधा      - लघुकथा
विषय     - "उसने कहा था"
आयोजन संचालक - किरण बाला चंडीगढ़



प्रमिला कॉलेज जाने के लिए प्रतिदिन घर से निकलती,तो बस स्टॉप पर मनचलों की गंदी -गंदी फब्तियाँ सुनकर आहत हो जातीं। कभी वो आपसी बातचीत में अपशब्दों का प्रयोग खुलकर करते... तो कभी उसे देखकर कोई फ़िल्मी गाना गाना प्रारंभ कर देते उसकी साथी अध्यापिकाएं भी इन सब बातों से दुःखी थी,किंतु कोई भी कुछ नहीं कहता।किंतु प्रमिला अक्सर कहतीं "कि हमें समाज में व्याप्त इस बुराई को समूल नष्ट करना होगा। इन भटके हुए युवकों को अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करना होगा। इनकी विकृत मानसिकता को बदलना होगा।"
उसकी साथ की शिक्षिका रमा उससे कहती "कि प्रमिला आज कल बुराई को बुराई से ही जीता जा सकता है, अच्छाई से नहीं"
किंतु प्रमिला का अडिग विश्वास था कि "अच्छाई से ही बुराई को जीता जा सकता है"उनमें से एक लड़का जगन नाम का था, जिसकी बहिन प्रमिला के कॉलेज से  स्नातक कर रही थी। प्रमिला पढ़ाई में उसकी बहुत मदद किया करती थीं। उसे अतिरिक्त समय भी अपने कालांश से अलग प्रदान करतीं थीं।पुस्तकालय से उसके लिए उत्कृष्ट पुस्तकें मुहैया करातीं थीं। एक दिन कुछ मनचले लड़कों ने जगन की बहिन को रास्ते में रोक लिया... और उसे जबरन गाड़ी में बिठाने का प्रयास किया। संयोग से प्रमिला ने यह घटना घटित होते हुए देख ली,और पुलिस का नम्बर डायल करके शोर मचाकर राहगीरों को इकट्ठा किया ।
बौखलाहट में वे गुंडे जगन की बहन को वहीं छोड़कर मैदान छोड़ भाग खड़े हुए।
जब जगन को पता चला कि प्रोफेसर प्रमिला ने उसकी बहन को बचाया है तो उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू आ गए...और उसका हृदय आत्मग्लानि से भर उठा। उसने संकल्प किया कि बस अब और नहीं बुरी संगत में बैठना.. बस अब और नहीं मन मंदिर को दूषित करना और प्रमिला का कथन सही सिद्ध हुआ। उसने कहा था "कि बुराई को अच्छाई से ही जीता जा सकता है"


प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश



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