स्वप्निल संसार-निरूपमा

प्रात: से संध्या तक,
चिड़ियों सा चहकना, 
मुस्कुराहट से उसकी, 
घर का महकना । 
खिलखिलाते हुए उसका ठुमकना ,
कभी रुठते हुए मुझे झटकना,
कभी लड़ियाते हुए आकर लुमटना ,
गोद में सिर रखकर आंखें मूंदना ।
कभी बचपन की याद करना ,
फिर कहानी सुनाने की जिद करना ।
निराला सा लड़कपन उसका, 
मुझे फिर से  उसके बचपन में ले जाता है, 
कजरारे नैनों में स्वर्णिम स्वप्न लिए, 
उसका मधुर बचपन खिलखिलाता है। 
मन भावन लगता है उसका बचपन सुहाना ,
संग मिलकर गुड़िया का ब्याह रचाना, 
स्वप्निल संसार में नन्ही परी की सखी बन जाना, 
मीठे बैनों से तुतलाकर खूब बतियाना, 
अक्सर  मुझे खूब भाता है।
मेरा हर दिन बेटी दिवस मन जाता है।




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