भोजन का स्वास्थ्य पर प्रभाव -प्रीति


ट्रांसफैट( असंतृप्त वसा )भोजन का स्वास्थ्य पर प्रभाव 


असंतृप्त वसा का स्वास्थ्य पर प्रभाव जानने से पूर्व यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि वसा किसे कहते हैं?वसा का साधारण शब्दों में अर्थ   भोजन से प्राप्त होने वाली चिकनाई से लगाया जाता है। जैसे घी, मक्खन, तेल आदि वसायुक्त भोज्य पदार्थ की श्रेणी में आते हैं।  हम सब जानते हैं कि भोजन से हमें 5 पोषक तत्व प्राप्त होते हैं जैसे-
 कार्बोहाइड्रेट
 विटामिन 
खनिज लवण
 वसा
 प्रोटीन आदि।
 किंतु अक्सर देखा गया है कि अधिक वसा का सेवन करने से व्यक्ति अनेक बीमारियों का शिकार  होने लगता है । वसा को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक तत्व माना गया है, आँखों के लिए भी भी अंडा, घी, विटामिन ए से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग अत्यंत आवश्यक है। किंतु यदि शारीरिक श्रम नहीं के बराबर होता है और बहुतायत में वसा शरीर को प्राप्त होती रहती है ,तो व्यक्ति अनेक असाध्य बीमारियों से घिरने लगता है।


 आइए जानते हैं असंतृप्त वसा का शरीर पर प्रभाव–


1.  गुर्दे प्रभावित होना -
मोटापे के कारण गुर्दे के चारों ओर वसीय तंतुओं की मोटी परत जम जाती है। जिससे गुर्दे द्वारा होने वाले कार्यों में रुकावट आती है ।गुर्दा हमारे शरीर से निरूपयोगी पदार्थों का निष्कासन करता है। जैसे यूरिया, यूरिक अम्ल ,अमोनिया टॉक्सिन आदि।   यदि गुर्दा अपना कार्य नहीं कर पाता है तो यह विषाक्त पदार्थ रक्त में ही रह जाते हैं।  रक्त की छनन प्रक्रिया भी ठीक से नहीं हो पाती है जिससे अशुद्ध पदार्थ रक्त में ही रह जाते हैं। अशुद्ध रक्त शरीर के लिए जहरीला होता है ।
गुर्दे काम करना छोड़ते ही मनुष्य की मृत्यु शीघ्र ही हो जाती है। वसा का सेवन एक निश्चित मात्रा में ही करें। अधिक वसा सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक होता है।


 2. कोलेस्ट्रोल बढ़ना --
सामान्यतः रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा 120 से 160 ml होती है।इससे अधिक कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने पर कोलेस्ट्रॉल रक्त धमनियों की आंतरिक दीवारों पर जमने लगता है। फल स्वरुप रक्त धमनियों की दीवारों संकरी होने लगती हैं।  धीरे-धीरे की इन धमनियों की दीवारों पर इतना अधिक कोलेस्ट्रोल का जमाव हो जाता है, कि इनका लचीलापन भी समाप्त हो जाता है। इनका व्यास भी छोटा हो जाता है ।जिससे रक्त के बहाव की गति कम हो जाती है। और यही कारण है कि हृदयाघात की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।


3. गुर्दे प्रभावित होना-- आवश्यकता से अधिक वसायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करने से शरीर में अधिक मात्रा में फैट बढ़ने लगता है। जिससे त्वचा के नीचे फेफड़े ,हृदय ,यकृत आदि अन्य कोमल अंग तथा शरीर के अन्य स्थानों पर वसा की मोटी परत जमने लगती है। जिससे गुर्दे प्रभावित होने लगते हैं।


 4.मधुमेह होना--
 मधुमेह हालाँकि वंशानुगत रोग भी है। लेकिन फिर भी यह अधिक मोटे लोगों को जल्दी होता है। वसा और कार्बोज के अधिक सेवन से शरीर में अधिक मात्रा में ग्लूकोस का निर्माण होता है ।हमारे शरीर के रक्त में एक सीमा तक ही ग्लूकोज संग्रहित रहती है ।अतिरिक्त ग्लूकोस गलेकोजन में बदलने लगती है । तब इंसुलिन हार्मोन का स्राव अवरुद्ध होने लगता है। फल स्वरुप मधुमेह हो जाता है।


5. मोटापा-- मोटापा जैसी बीमारी आधुनिक जीवन शैली की ही देन है। जिसमें शारीरिक श्रम का अभाव है ।और हम सब अपने कार्यस्थल पर घंटों बैठकर लगातार कंप्यूटर स्क्रीन की ओर टकटकी बांधे रहते हैं। जिससे शरीर में चर्बी जमने लगती है ।जिसे सामान्य भाषा में मोटापा कहा जाता है। मोटापा के शिकार व्यक्तियों को अपने दैनिक कार्यों को करने में भी परेशानी का अनुभव होने लगता है।


6. घुटनों और जोड़ों का दर्द---


अधिक वसा का सेवन करने से मात्र मधुमेह, मोटापा, गुर्दे खराब होना जैसे रोग ही नहीं होते हैं, अपितु मोटापा अधिक बढ़ने के कारण घुटनों और जोड़ों में भी दर्द रहने लगता है।
 व्यक्ति को उठने- बैठने में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिन प्रतिदिन वजन बढ़ने से घुटनों में वजन सहन करने की शक्ति क्षीण होने लगती है।


अतः हमें शरीर में असंतृप्त वसा को जमा नहीं होने देना चाहिए। सुबह को 1 घंटे योगा और रात को खाना खाने के बाद 1 घंटे टहलना अवश्य चाहिए।
क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।


प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश


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