चंन्‍द्रलोक- अनुभा

चंद्रलोक से आयी कोई हूर नही हूँ ।
परीलोक से आयी कोई नूर नहीं हूँ ।।


बाबुल के आँगन से आई सामान्य बालिका हूँ।
अपने पति के आशियाने की एकमात्र मल्लिका हूँ।।


मेरा पति मेरा नाज़, मेरा पति मेरा ठाठ।
उनके सलामती को मैं हर दिन करूँ पूजा पाठ ।।


लाल चुनरी, हाथ चूड़ा - मेहँदी, पैर महावर।
सोलहो शृंगार कर, करवा चौथ मनाती हूँ।।


सलामत रहे सुहाग, स्वस्थ और खुशहाल।
इसलिए प्रत्येक वर्ष करवा चौथ मनाती हूँ।।


चाँद, रखे छलनी के चाँद को खुश हाल।
इसलिए छलनी से चाँद देख प्यास बुझाती हूँ।।


सितारों संग रहने वाले चाँद आज जल्दी आना।
अर्घ दिला कर मेरे पति के संग मेरी प्यास बुझाना ।



               -अनुभा वर्मा, पटना



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