कमसिन बाली उमरिया देखो बड़ा गजब है ढाये रे
मैं तड़पू सारी रैना यह देख देख मुस्काए रे
जब से आया जीवन की देहरी पर यौवन पाहुना,
मन की कोयलिया का कोई तो समझा जाए रे।
चार कदम चल चल के पीछे मुड़ - मुड़ के मैं देखूं रे,
अनजानी आहट पर जियरा हलक में अपने भिचूं रे।
आंचल जो उड़ना चाहे तो उड़ने उसे भी ना दूं मैं
मन की पतंग की डोरी खींचूं फिर भी उड़ती जाए रे।
मैं तड़पू सारी रैना ये देख- देख मुस्काए रे।
रोज खिले एक गुलाब मेरे मन की क्यारी में,
सुब्हा से संध्या तलक झूले तन की डाली में।
मन भंवरा गुनगुन करें तो कैद करूं पंखुड़ियों में,
बाबुल मोरे अब तो जागो ही यौवन का चमन मुरझाए रे।
मै तड़पू सारी रैना यह देख देख मुस्काए रे।
मैं भूली नादान तेरी चंचलता ना जानू रे,
अंखियों से जो करे तू बातें मैं कैसे पहचानू रे।
जग बैरी हो जाएगा जो "प्रीत" की दहरी लाघूं में,
डोली लेकर आजा तू तेरी दुल्हन शर्माए रे।
कमसिन बाली उमरिया देखो बड़ा गजब ढाये रे,
मैं तड़पू सारी रैना यह देख देख मुस्काए रे।
जब से आया जीवन की देहरी पर यौवन पाहूना,
मन की कोयलिया का कूके कोई तो समझा जाए रे।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"
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