शरद पूर्णिमा
अमृतमय शरद का पूनम ,
लगे धवल रूप मनोहर ।
रजनी का तम दूर करे ,
लगते दूधिया सरोवर।।
हो शरद ऋतु का आगमन,
धरते शीतलता शबनम ।
मोती जैसे चमक लिए ,
खिलते मानुष का तन-मन।।
द्वार-द्वार घर सज जाये
गगन पर चाँद मुस्काये।
सोलह कला से पूर्ण हो,
शरद चाँद अमृत बरसाए।।
मुरलीधर तान सुनाए,
लक्ष्मी मात भ्रमण पर जाए।
ब्रज बालाएँ बावरी हो ,
वृंदावन में रास रचाए
अम्बर पर चाँद चमकता ,
चाँदनी खिलखिला जाती।
श्वेत चादर ओढ़े धरा
सारी दुनिया मुस्काती ।।
शरद चाँद नहाए निशा,
अपने यश पर इठलाती।
सारे ब्रम्हांड जगमग होते ,
तम मोती स चमचमाती।।
सुब सुहावन सुखद लगता,
दमके धरती का आँचल ।
तरु पात ठहरते बूँदें ,
करते आँखों को घायल।।
मीठी जाड़ा दे आंनद ,
दिनकर भी खूब सुभाए ।
मधुर - मधुर बहते समीर ,
सृष्टि का जीवन हर्षाए ।।
नीलाम्बर पावन लगतें,
छटे बादलों का घेरा ।
नीड़ छोड़ उड़ते पंछी ,
स्वच्छंद बनातें डेरा ।।
फसलों पर पड़तीं बूँदें ,
हो पकनें को तैयार।
बाग - बगीचा गदगद हो ,
दे मीठे फल रसदार ।।
खेल - कूद और व्यायाम ,
का करते सभी अभ्यास ।
स्वस्थ्य शरीर बनाने का
करे मानुष सतत प्रयास ।।
शरद मन भावन हो सदा,
करते बसंत का स्वागत ।
सारी दुनिया शीतल कर,
ये दूर कहीं हो जावत ।।
पुष्पा ग़जपाल "पीहू"
महासमुंद (छ. ग.)
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