हास्य कविता ..
जब से आया है कोरोना,
पल को भी नहीं है चैना,
बावर्ची बन गया हूँ,
रात दिन करू चौका चूल्हा।१।
जब से आया कोरोना,
पाया न इक पल चैना..
उस पर बीवी बडी गुर्राये,
बडी बडी आँखे मुझे दिखाये,
लैपटॉप में बैठा है दुष्ट रावण,
कैसा मैं फँस गया हूँ हाय।२।
जब से आया कोरोना .,
पाया न इक पल चैना...
जो करूं उसमें नुक्स निकाले,
सौ सौ ताने वो मुझको मारे,
हँसी उडाये दिन रात मेरी ,
ताली बजा बजा के सर पे नाचे।३।
जब से आया कोरोना..
पाया न इक पल चैना..
दो हत्यारों के बीच फँसा हूँ,
घर में ही कैद हो गया हूँ,
घर में मैडम बडा सताये,
फिर बार बार बॉस घुडकाये।४।
जब से आया कोरोना..
पाया न इक पल चैना..
इससे तो अच्छा ऑफिस था,
अपना भी एक रूतबा था,
बन गया हूँ मैं ऐसा कुकर,
जो घर का न घाट का था।५।
जब से आया कोरोना,
आया न इक पल चैना..
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सुखमिला अग्रवाल
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