चेहरे पे चेहरा-सुधा बसोर

दुनिया की रीत यही, दिखता है सच नही।
नकली के पीछे सब, सच न छुपाइए।।


धर्मराज बनें सब, होते दुशासन सब।
बाबाओं के डेरे में भी, पाप न कराइए।।


चेहरा तो है संस्कारी,  भावना है व्यभिचारी।
रावण छुपा है फिर, राम न बताइए।।


होते हैं सफेद पोश, भ्रष्टाचारी मदहोश।
जनता को मारकर, कुर्सी न बचाइए।


            सुधा बसोर 
             गाजियाबाद



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