लगाव-डा गरिमा

विषय - लघु कथा 

कहते हैं जितना प्रेम इंसानों को होता है उससे कँही ज्यादा प्रेम और अपनापन पशु – पक्षियों को होता है इसका साक्षात् प्रमाण अक्षत ने तब पाया ज़ब उसके दादा जी का स्वर्गवास हों गया था |


उसने देखा था कि कैसे उसके दादा जी ज़ब भी खाना खाते तो रोटी के छोटे – छोटे टुकड़े बनाकर रख लेते |ये उनका प्रतिदिन का कार्य था क्योंकि जैसे ही उसके दादा जी खाना खाने बैठ जाते तो कुछ चिड़ियाँ उनके पास आकर बैठ जाती थी, इतना ही नहीं कुछ तो उनकी चारपाई पर भी आकर बैठ जाती थीं और वह उन्हें छोटे – छोटे टुकड़े जो तोड़कर रखते थे उन्हें एक – एक करके डालते रहते थे और ज़ब तक खाना खाते, वह रोजाना ऐसे ही उन्हें भी खाना खिलाते थे और ज़ब वह खाना खा लेते थे तो चिड़ियाँ फुर्र – फुर्र करके उड़ जाती, उनका रोजाना का यही कार्य था |


घर के सभी लोग ये सब देखते कि कैसा अपनत्व था और कैसे उन्हें पता चल जाता कि वो उसी समय आकर उनके पास बैठ जाती हैं |अक्षत भी ये सब देखता था लेकिन आज वह सब कँही खत्म- सा हो गया था, क्योंकि उसके दादा जी नहीं रहे थे लेकिन चिड़ियाँ आज भी वँही बैठी थी आकर, प्रतीक्षा मे थीं कि कब उन्हें कोई टुकड़ा डालेगा,दाना तो डाला गया था उन्हें,बस तरीका बदल गया था आज लेकिन वह भाव और लगाव नहीं था आज वह|सब कुछ वैसा ही था बस नहीं था वह इंसान जो उनके लिये दाना देता था उनकी भूख शांत करता था, उनमे वो चहचहाहट नहीं थी एक उदासी छा गयी थी सभी में, जैसे कोई उनका अपना चला गया हो | ऐसा लग रहा था कि जिसके सहारे वो उस घर मे आती थी वो घर अब उनका नहीं रहा था, एक – एक करके वो चली गयी कोई आवाज़ नहीं थी आज उनके उड़ते हुए जाने पर | ना जाने कितने दिनों तक उनका आना ऐसे ही लगा रहा और ज़ब लगा कि अब वो इंसान नहीं है जो उन्हें इतना प्यार देता था, दाना तो अभी भी मिलता है पर वो अपनत्व नहीं था वँहा | उस दिन के बाद वो लौटकर नहीं आयी वँहा फिर कभी |


अक्षत ने उस दिन महसूस किया कि हम तो इंसान हैं तब इतना प्यार और लगाव नहीं महसूस कर पाते हैं और ये पक्षी जान से भी ज्यादा प्यार और लगाव मानते हैं, जिनके पास कुछ पल भी रह लेते हैं | हमसे अच्छे तो ये पशु – पक्षी हैं कम से कम बस प्यार के लिये जीते हैं |
   डॉ गरिमा त्यागी



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