थाम तिरंगा कर में अपने,
तूफानों से भिड़ते है।
यह उर में हिंदुस्तान लिए,
बेख़ौफ़ हिमालय चढ़ते है।।
आँखे दोनों बन्द है जिसकी,
वह आँख दिखाना चाहता है।
प्रताप-शिवा के पौरुष पर,
वह घात लगाना चाहता है।।
वसुधैव कुटुंबकम वाले हैं,
इसलिए ही समझो मौन इन्हें।
जाँबाज़; हिन्द के वीर है ये,
ललकार सकेगा कौन इन्हें।।
हो सवार निज चेतक पर ,
उदघोष भवानी करते हैं।।
यह उर में हिंदुस्तान लिए।
बेख़ौफ़ हिमालय चढ़ते है।।
भ्रम नहीं पालो ड्रेगन!तुम,
भक्त बड़े बलिदानी है।
सारे अंधों को डूबो सके,
गंगा मे इतना पानी है।।
गाँधी-गौतम के अनुयायी,
इसलिए अहिंसा चाहते है।
अपितु यह हिन्द केसरी है,
चट्टानों से टकराते है।।
ज्वालाओं सा जोश लिए,
सौगंध उठाकर चलते है।
यह उर में हिंदुस्तान लिए,
बेख़ौफ़ हिमालय चढ़ते है।।
एक पड़ोसी पश्चिम का,
मुँह की खाकर बैठा है।
उन नेत्रहीनों की यारी में,
बाप से अपने ऐंठा है।।
है राम-कृष्ण की दिव्य धरा,
इसलिए पहल है शान्ति की,
लहू में वरन है चिंगारी,
नेता सुभाष सी क्रांति की।।
समय पड़े तो ऊँगली पर,
सारंग-सुदर्शन धरते है।
यह उर में हिंदुस्तान लिए,
बेख़ौफ़ हिमालय चढ़ते है।।
सुरेन्द्र खेड़े 'राही'
16/A उर्वशी नगर बड़वाह जिला खरगोन मध्य-प्रदेश 451-115
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