मुगलों के मनसूबों पर -रमेश

6 दिसम्‍बर शौर्य दिवस पर विशेष आयोजन


मुगलों के मनसूबों पर,
एक दिन पानी फिर जाना था।
वे उठे नुकीले पत्थर जो,
समतल उनका हो जाना था।।


निज रघुवीर की ऐसी दशा देख,
क्यों न हरिभक्त रक्त खौलेगा।
चौदह वर्ष वनवास बाद भी,
क्यों मेरा हरि वन में ठहरेगा?


फिर छिन्न-भिन्न कर दिया समूचा,
चहिए अवशेष बचाना था।
आगे आने वाली पीढ़ी को,
यह शौर्य साक्ष्य दिखलाना था।।


हो पायेगा विश्वास तभी,
विषवास दिलों का मिटाना था।
अमर्यादित एक दिन भले हुए,
मर्यादा की साख बचाना था।।


जो सत्य रहे अमरत्व वही,
फिर से वनवास नहीं जायेंगे।
सरयू की सदा अविरल धारा से,
पद कमल  पखारे जायेंगे।।


© रमेश सिंह यादव 'मौन'
गाजीपुर, उत्तर प्रदेश



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