पहली तनख्वाह-मनोरमा


संस्मरण 

पहली तनख्वाह..

परिस्थितियाँ कब, कहाँ, किस मोड़ पर अपना रंग दिखा दें कुछ पता ही नहीं चलता।कुछ घटनायें अपनी अमिट छाप छोड़ जाती हैं।

15अक्टूबर ,2015 को एक प्राइवेट स्कूल की जाब के लिए इंटरव्यू देने गयी ।कुछ पता नहीं था क्या करना है ,क्या पूछेंगे और मेरे जबाव क्या होंगे।यहाँ तक कि अपने शैक्षिक प्रमाणपत्र भी नहीं ले गयी।

जैसे ही पहुँची प्रिसिंपल के रूम में इंतजार करने को कहा गया। मैं वहाँ बैठी बैठी यूँ ही चारों तरफ देखने लगी। गाँव के प्राइवेट स्कूल के हिसाब से ठीक ठाक था। 

प्रिसिंपल के आने पर खड़ी हुई तो पतिदेव ने इशारा किया कि खड़ी क्यों हुई?

प्रिंसिपल ने सवाल पूछना शुरू किया...अब नौकरी की क्या जरुरत है ?क्या आपको लगता है कि आप बच्चों को हैण्डिल कर सकेंगी?अगर बच्चे उद्दण्डता करें तो आप कैसे उन्हें कंट्रोल करेंगी। फिर एजूकेशन पूछी। साथ ही ये सवाल कि अब इस उम्र में नौकरी की क्या जरुरत पड़ गयी?इस का उत्तर पति देव ने दिया ।

फिर एक पेपर और पेन देते हुये उन्होंने एक सवाल पर संक्षिप्त निबंध लिखने को कहा ।कि क्या बच्चों को मारना सही है या गलत।

मैं ने पाँच मिनिट माँगे ।और तय समय में लिख कर दे दिया। जब वो उस निबंध को पढ़ रहे थे तब मेरी नज़र उनके फेस को पढ़ रही थी।उम्मीद थी जाब मिल जायेगी।पर सत्र आधा व्यतीत  हो चुका था तो शंका भी थी।

उन्होंने निबंध पढ़ने के बाद कुछ देर मुझे गौर से देखा फिर बोले हम आपको सूचित कर देंगे।अपना ऩ. नोट करवा दीजिए।

शंका,आशंका के बीच निराश होकर लौट आई।दूसरे दिन ही खबर आ गयी ज्वाइन करने की ।पर सैलरी मात्र 3000/मासिक।पर आधे माह के 1500 ।

चलो कुछ तो शुरू हुआ। मेरे आने से वहाँ पढ़ा रहीं लड़कियों को शायद बुरा लगा।सब 18-20 की थी और स्वयं भी पढ़ रही थीं।

पहले मुझे उन के साथ क्लास शेयर करने को दी गयी। दो दिन में अपना काम बखूबी समझ कर मैंने मनोयोग से पढ़ाना शुरु किया।पाँचवे दिन सी जब प्रेयर के बाद मैं क्लास रूम (सातवीं कक्षा)पहुँची तो मेरी सहयोगी न आई। मैंने पढ़ाना शुरु किया।दो पंक्ति ही समझा पाई थी कि तीन चार लड़कियाँ (शिक्षिका) आईं और उनमें से  मोना नाम की टीचर ने बोला,"मैडम आप यहाँ मत पढ़ाइये।आप को एल. के. जी के बच्चों को पढ़ाना है। हटिये यहाँ से...!उसके शब्दों में इतना अपमान,हिकारत थी कि मेरे आँसू बह निकले।

काँपते गले से पूछा ,किसने कहा है?

प्रिंसिपल सर ने।

मैं कक्षा से बाहर निकली और एल के जी कक्षा में जाकर बैठ गयी।लेकिन  चाहते हुये भी मेरे आँसू न रुके।

उधर से प्रिंसिपल गुजरे ।मुझे देख एक सेकंड रुके और निकल गये।मेरे मन में खटास आ चुकी थी।परिस्थितियाँ विपरीत थी और पैसा पहली प्रायोरिटी। दिमाग काम करना बंद कर चुका था। लंच ब्रेक में भी कक्षा से बाहर न निकली।वहीं बच्चों के बीच खुद को बहलाती रही।

तभी बाई ने आकर कहा आपको सर बुला रहे हैं।

क्यों?

"बहन जी ,आप सबेरे से रो रहीं हैं ।ई हम सर को बताय दिये।"

"अरे , आपने ऐसा क्यों किया?"

"बहन जी आप ने चार दिन में जैसन हमाये संग बर्ताव करो है ,ऐसन जे कोऊ न करतीं।ऐ ,ओ करके बात करती हैं।तो...।"

"कोई बात नहीं।

कह कर हम अपने चेहरे को रुमाल से साफ कर केऑफिस पहुँचे।

"बैठिये।

जी सर ,मैं ठीक हूँ।आप ने बुलाया।"कहते कहते गला रूंध गया

"आप को कोई तकलीफ..।"

नहीं 

फिर रोने का कारण ।

कोई खास बात नहीं सर ।बस जो बात आपको स्वयं कहनी चाहिये थी वह अन्य शिक्षिकायें क्लास रुम में ,स्टूडेंट के सामने गलत तरीके से कहें ...।मुझे उचित न लगा।

पूरी बात बताइये।

हमने पूरी बात उनको बता दी।एक सैंकंड मौन रह के बोले,"सॉरी। वो लोग प्रेयर के बाद आईं थी मेरे पास ।तो हमने कहा था कि ठीक है वो न्यू हैं उन्हें छोटी क्लास दे देंगे।...पर यह नहीं मालुम था कि मेरे जानकारी के बिना यह करेंगे।गलत तो किया है उन्होंने।

खैर ..वैसे आपको एल के जी के बच्चों को पढ़ाने में कोई दिक्कत..?"

उनके इस बर्ताव से समझ गयी ।पर मजबूरी थी उस समय।

तो हम यह कह आ गये कि आप प्रिंसिपल हैं।सैलरी आप देंगे और काम मैं करूँगी।तो जो भी आदेश हो कृपया आप दें ।अन्य शिक्षक नहीं जो उम्र और अनुभव में मुझसे छोटी हैं और स्वयं बी.ए या इंटर कर रही हैं।"

बाकी का पूरा माह एल के जी के बच्चों के साथ ही निकाला। प्रेयर के बाद मैं सीधा अपनी कक्षा में आ जाती। सर ने बहुत कहा पर मैंने अन्य किसी के साथ कक्षा शेयर करने से मना कर दिया।

बच्चे भी खुश थे। 

महीने की आखिरी तारीख को सर ने आफिस में बुलाया ।सैलरी का लिफाफा देकर बोले , "मैम, थैंक्स ।आपने जो निबंध लिख कर दिया था पंद्रह दिन से आपकी चैंकिंग हो रही थी।आप खरी उतरीं।"

फिर उन्होंने मोना और बाकी दोनों शिक्षकों को देखा और कहा, "शायद अब समझ आ गया होगा कि ज्वाइन के साथ ही इनको पाँचवी से आठवीं कक्षा क्यों दी?"

सैलरी हाथ में आते ही समझ न पा रही थी कि हँसू या रोऊँ ।मात्र 1500/ रुपये थे पर पंद्रह दिन के तनाव और मेहनत के थे। जिनसे मेरे घर की व्यवस्थाये बननी शुरु होनी थी।

 

मनोरमा जैन पाखी

स्वरचित 

 



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