वो सर्द भरी रात- शिवा सिंहल

वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021         

 कितनी शान  से सो जाते है ,हम घुसकर रजाई के अंदर फिर भी ठंड ठंड चिल्लाते हैं, मगर हम ये क्यों नहीं सोच पाते , कि वह गरीब कैसे रहते होंगे फुटपाथ पर जिनके सर छुपाने को न छत है, कैसे इतनी सर्द  हवा में रात बिताते होंगे, क्योंकि दोस्त हमारे पास सब कुछ है मगर यह सोचने का वक्त नहीं है। एक दिन मेरे दिल ने मुझसे सवाल किया  ? क्यों रे शिवा इन कपड़ों का क्या अचार डालेगी  ! यह स्वेटर क्या अपने मायके ले जाएगी ? बोलो क्यों ना इन्हें तुम जाकर जरूरतमंद लोगों को लेकर कुछ पुण्य कमा लो और इन शरद हवाई रातों से उन्हें बचा लो , तब शिवा बोली मन तूने मेरी आंखें खोल दी, मैं उन बच्चों के लिए सामान थैले में भरने लगी, खाना भी ठीक से नहीं भाया, गरीब बच्चों के प्रति मन बेचैन होने लगा मैं छत  पे चक्कर लगाने लगी ,ना पैरों में चप्पल थी न, तन पर स्वेटर था ,और उन सर्द हवाओं का अनुभव कर रही थी, कि कैसे उन बच्चों को ठिठुरन महसूस होती होगी, जब तक हमें अपने दिल में दर्द एहसास नहीं होता तब तक हम दूसरों के दर्द को समझ नहीं सकते, दांत बज रहे थे बदन सर्दी से थरथर कांप रहा था, सर्द हवाएं चल रही थी, अंखियों से आंसुओं की नदियां बह रही थी,

       मैंने फूर्ती से थेले उठाएं और गाड़ी में रखे, निकल पड़ी गरीब बस्ती की ओर, पीछे पीछे राज भी आ गए थे ,जूही उन बच्चों की बस्ती के करीब पहुंची उन बच्चों को सर्दी में ठिठुरते देखा ,एक दूसरे से चिपक ते देखा, दिल दहल गया था मेरा आंगन एकदम ठंडा था बिछाने को टाट भी नहीं था, मैंने गाड़ी से उतरकर एक बूढ़े बाबा को कंबल उड़ाया, उसने दुआ में हाथ ऊपर उठाया, फिर किसी बच्चे को मैंने स्वेटर पहना  या तो किसी के नीचे बिछोना बिछाया, तो किसी के सिर पर टोपी लगाए रात का सन्नाटा था, ठंडी सर्द हवाएं चल रही थी कुछ अंधेरा सा था, बच्चे यह देख कर खुश हो रहे थे ,किसी को मैंने शर्ट पहनने को दी तो किसी को पेंट दिया तो किसी को मोजे पहनाये कुछ खाने का सामान भी साथ में ले गई थी सभी बच्चों को बारी-बारी बिस्किट और नमकीन दिए और जो रोटी बची थी वह भी साथ ले गई थी , राज ने भी उन बच्चों को खाना परोसा,उन बूढ़े बाबा का भी कंबल में से हाथ निकला हुआ था बाहर तो हमने सोचा कि शायद यह भी कुछ खाने को मांग रहे हैं, जैसे ही हमने उनके हाथ में बिस्किट रखे तब बिस्किट जमीन पर गिर पड़े शायद यह बाबा हमारे कंबल का ही इंतजार कर रहे थे ,और वह खुदा के प्यारे हो गए, देखकर उन्हें जाने क्यों राज की आंखों से आंसू बहने लगे उसके आंसू बाबा के खुले हाथ पर गिर रहे थे ,जो इतनी सर्दी रात में भी मोती से चमक रहे थे ,
            मैंने राज को उठाया और धीरज बंधाया, तब राज बोले शिवा हम आज यह प्रण करते हैं कि जैसे आज हम जागे हैं वैसे ही हम अपने दोस्तों को जगायेंगे, घर में रखने से ज्यादा जरूरतमंद की  सेवा करना, जिनका बचपन जवानी बुढ़ापा फुटपाथ पर ही बीता, इतनी सर्द हवाओं में भी फुटपाथ ही इनका चलता फिरता रेन बसेरा है ,कभी खाने को मिल गया तो अमीरी की दावत है ,और जब ना मिला तो फकीरी की फांका लोजी है , इतनी सर्द हवा में मेमसाब कौन हमें पूछ पाते हैं, ये तो  आज कुदरत का करिश्मा हो गया , जो आपसे मिलना हो गया, और इस पापी पेट को कुछ खाने का मिल गया, मालिक सदा तुम्हें ही ऐसे दयावान बनाए रखें, यूं ही सर्द हवा में आप ओरो को बचाती रहे । यही हम गरीबों की तहे दिल फरियाद है,कहकर वे बच्चे हाथ जोड़ने लगे तो कुछ पैर पड़ने लगे, उन्हें देखकर हमारा दिल उमड़ घुमड़ कर रोने लगा,राज और हमने उन बच्चों को गले लगा लिए और उनके सर पर हाथ फिराने लगे कुछ ममता का अहसास उन्हें कराने लगे। ी
 
शिवा सिंहल
 

 

 

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