अधूरी कहानी-कंचन जायसवाल

 वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021

अधूरी कहानी

2- हवा के तेज झोंके के साथ आई बारिश की बूंदों ने उस खत को जिससे मेरे अश्क पहले ही आधा भी हो चुके थे, पूरा भिजवा दिया उसकी स्याही इस कदर फैल गई थी कि लिखे शब्द तो शब्द अक्षर भी अपना अस्तित्व खो चुके थे-------------
मगर मै- मगर मैं भी कहां मानती हार, खत को सुखाने लग गई वह खत नहीं था सिर्फ, उसमें मेरे दिल के सारे अरमान थे कुछ प्यारी प्यारी यादें थी जिन्हें मैंने अपने मुस्कान के साथ पन्नों पर उतारा था वह सारे लम्हे थे जो मैं कभी जीती थी किसी अजनबी के सपने देखते हुए, तो कैसे उसे यूं ही भीग जाने देती। मैंने तो बहुत कोशिश की थी अपने रिश्ते को बचाने के लिए मगर, शायद मेरी कोशिश कम पड़ गई या एक तरफा प्रयत्न सफल ना हो पाया क्यों एक झटके में वह सब छोड़ कर चला गया, कभी कहा था उसने तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा, फिर क्यों एक शक ने हमारे बीच इतनी बड़ी दीवार खड़ी कर दी, और गलतफहमी जीत गई और प्यार एक बार फिर हार गया। उसके वह प्यार भरे खत जो फूलों से महकते थे। मेरी जिंदगी थे, जिन्हें मैंने संभाल कर रखा था। बारिश को भी मुझ पर दया नहीं आई जरा सी भी, मेरी आंख क्या लगी मेरे खत को भीगा कर चली गई। उन्हें भिगाने के लिए तो मेरे अश्क क्या काम थे जो रोज सारी बातें याद कर करके मेरे प्यार भरे खत को भिगो दिया करते थे आंखों से पानी निकलता और टप टप करके खत पर गिरता अब कैसे सुखाऊ में इन्हें आंखों का पानी खारा, समुंदर का पानी भी खारा, बारिश तुम मीठी थी, फिर मेरे खत को कियू भिगो डाला।

कंचन जायसवाल, नागपुर, महाराष्‍ट्र


 

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