वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
मंदिर में जैसे भगवान की मूर्ति
तरु पर फूलों भरी शाख शोभती
आकाश में जैसे सूर्य चंद्र की उपस्थिति
सूने घर में जैसे इंसानों की बस्ती
भक्तों के हृदय में जैसे प्रभु की भक्ति
उपवन में महकते सुमनों की सुरभि- सी
नील गगन में पूनम के चांद -सी
प्रभात में उगते सूर्य की लालिमा -सी
चांदनी रात में फूलों पर पड़ती चांदनी सी
माथे पर देखकर तेरी लाल- लाल बिंदिया
आंखों से गायब हो जाती है मेरी निंदिया
मन वीणा के तार हो उठते हैं झंकृत
अंतर्मन प्रणय स्वर हो उठते हैं मुखरित
दहक उठते हैं तन -मन में तब मेरे अंगार
बिंदिया लगा करती हो जब तुम सोलह श्रंगार
खींचती है मुझे तेरी ओर ये सम्मोहिनी बिंदिया
निहारने की ललक अपलक भूलकर दुनिया
मन मृग मेरा कस्तूरी -सी तेरी लाल बिंदिया
महकाती रात दिन भर देतीं जीवन में खुशियां
निरुपमा त्रिवेदी, इंदौर
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