समर्पण-अतुल

वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021

हवा के तेज झोंके के साथ आई बारिश की बूंदों ने उस खत को जिससे मेरे अश्क पहले ही आधा भींगो  चुके थे ,पूरा भिगा दिया, उसकी स्याही इस कदर फैल गई थी कि लिखे शब्द तो शब्द अक्षर भी अपना अस्तित्व खो दिए मगर
मैं जरा भी विचलित नहीं होना चाहता था । स्थितिवश मैं स्वयं   को संभाल कर रखना चाहता था, जो कुछ भी ‌मैंने पत्थर में पढ़ा ,वह मेरे दिल को झकझोर रहा था कि क्या मैं पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया या भाग रहा हूं ।दो राहों पर अटका मेरा  जीवन ? खत पढ़ते समय उसका मासूम चेहरा मेरे दिल की गहराइयों को छू रहा था। हां, नई दुल्हन को  नवजीवन में प्रवेश करते


  ही मां - बाबा की  जिम्मेदारी सौंप दी क्योंकि वह भी इन दिनों ‌कोरोना के कारण बाहर नहीं निकल सकते थे। हां, यादें ..... कैसे तड़पता हूं मेरी पत्नी शिना के लिए, कितने सपने बुने थे हमने,लाकडाउन में शादी के बाद,घर पर रहकर जीवन की बगिया को संवारने में बाहरी दुनिया से बेखबर,शिना को अंदेशा भी नहीं था  मेरी ड्यूटी पर आने का, अथाह प्यार भरा समुद्र गोते खा ही रहा था कि देश की सीमा पर से बुलावा आ गया, देश के प्रति अपने कर्तव्य  की घड़ी आ गई थी,शीना ने मां, बाबा की पूरी जिम्मेदारी बखूबी से निभाने का वादा किया, मां-बाबा भी उसके साथ , उसकी सेवा सुश्रुषा से अत्यंत खुश थे, फोन पर कई बार बातें होती रहती है परंतु नेटवर्क समस्या की वजह से फोन सुविधा सुचारू रूप से नहीं चल पाती। मात्र खत ही ऐसा माध्यम है जिसके जरिए हम एक दूसरे से अपने मन की बात कह पाते हैं। भीगा खत भी बार-बार पढ़ने को जी चाह रहा है जिसके कुछ शब्द ही पढ़ पाया  कि "मैं अब.... जल्द ही ..."तभी आंखें उस नन्हे बालक की कल्पना करते करते भीगने लगी और बारिश की बूंदों ने तो मेरी खुशी में नाच-गाना शुरू कर दिया। पत्र को संजो कर रखा है ,ऐसे पुराने कितने ही पत्र है जो मेरी यादों को हमेशा ताजा कर देते हैं ।अब  बेसब्री से इंतजार है अगले पत्र का जिसमें मेरे मां बाबा, दादा-दादी बन कर ,बहू के साथ नन्हे बालक को अपने स्नेह की गोद में झुलाते हुएं फोटो भेजेंगे। धन्यवाद शीना, मेरे जीवन को खुशहाल बनाने के लिए।मेरा देश के लिए कर्तव्य, तुम्हारा घर के लिए समर्पण। 


अतुल त्रिवेदी



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ