अटल का कवि मन-अर्चना

वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021

अटल का कवि मन
जो कल थे
वे आज नहीं है।
 जो आज है ,
वे कल नहीं होंगे।
 पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्हें किसी पार्टी विशेष  से नहीं वरन सभी जनता का भरपूर स्नेह प्राप्त हुआ। उनकी अस्वस्थता के चलते ही हमारा मन विचलित हो उठता था। लेकिन ईश्वर की इच्छा पर इंसान का वश कभी रहा नहीं। दिनांक 16 अगस्त 2018 जब अटल जी हमारे बीच नहीं रहे,तब टी.वी. के प्रत्येक चैनल पर उनकी कविताओं की आवाज गूंजती रही ‌। उनके निधन से पूरा देश शोक संतृप्त हो गया । एक राजनेता के साथ-साथ अपने हृदय पटल को खोल कर रख देने वाले अटलजी ने मन के प्रत्येक भावों को शब्दों में पिरो कर कविता के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें जीवन की सच्चाई को प्रकट किया। जीवन में घटने वाली सुखद- दुखद, कड़वी - मीठी,उन्नत अवनत घटनाओं से मिलने वाली प्रेरणा से ही काव्य का सृजन होता है और यही सृजनात्मक काव्य अटल जी की कविताओं में व्याप्त है।
आज दुनिया में कितना धोखा है, व्यक्ति का व्यक्ति पर से विश्वास उठ गया। स्वयं का स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सच झूठ में परिवर्तित हो रहा है। ऐसे में कोई कहां किसी की भावनाओं को समझ पाता है? झूठ व अहम का दम्भ अटल जी ने इन पंक्तियों में प्रकट किया-
"बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं ।
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं।
 गीत नहीं गाता हूं.".......... पहली अनुभूति
परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है, पुरातन परिवेश का अवसान और नूतन अस्तित्व का उद्भव सृष्टि की निरंतरता का मूल आधार है।
मन सूर्यास्त की संध्या  सा उदास हो उठता है लेकिन अंधेरी रात के पश्चात भोर में सूर्य की किरणें उम्मीद का उजाला शनै:शनै: बिखरती है शाम  का थका निराश मन फिर स्फूर्ति से चहक उठता है। जो इन पंक्तियों में प्रकट होता है-
"झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं ।
गीत नया गाता हूं।."..... दूसरी अनुभूति
राजनेताऔर साहित्यकार मूलतः समाज के चिंतक व पहरेदार होते हैं। समाज में होने वाली खुशियां एक ओर प्रसन्न चित्त कर देती है तो दूसरी ओर समाज में व्याप्त संकट दुख और अवसादों से पलकों को भींगो भी देता है । लेकिन स्वयं को संभाल कर हार नहीं मानना, तथा निरंतर पथ पर बढ़ते रहने का संदेश  
 अटलजी की अभिव्यक्तियों में परिलक्षित होते हैं-
"बाधाएं आती है आएं
घिरे प्रलय की घोर घटाएं, पांव के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते हंसते,
आप जलाकर जलना होगा
 कदम मिलाकर चलना होगा।."..... कदम मिलाकर चलना होगा।
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते करते अंततः हमें दृढ़ संकल्पित होकर अपने कार्य करते रहना चाहिए।
अटल जी ने अपने निजी जीवन में भी परहित को ही महत्व दिया। देश के हित के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले कवि ने एकाकी  जीवन की पीड़ा के साथ ही देश को ही अपना सर्वस्व माना ,अटल जी की इन पंक्तियों ने पवित्र संकल्प लेकर प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अनुकूल बना दिया-
"कुछ कांटों से सज्जित जीवन ,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन ,
नीरवता से मुखरित मधुबन ,
परहित अर्पित अपना तन-मन ,
जीवन को शत-शत आहुति में जलना होगा गलना होगा ।
कदम मिलाकर चलना होगा"....... कदम मिलाकर चलना होगा।
यथार्थ की उर्जा अंततः रिश्तो के मोम को भी पिघला ही देती है। अटल जी के व्यक्तित्व से लोग अत्यधिक प्रभावित थे। एक राजनेता के रूप में उन्हें समाज के सभी वर्गों का प्यार प्राप्त हुआ। जो इन पंक्तियों में झलकता है-
"प्यार इतना परायों से मुझको मिला
 न अपनों से बाकी है कोई गिला ,
हर चुनौती से दो हाथ मेंने किए,
आंधियों में जलाए हैं  बुझते दिए।"..... मौत से ठन गई।
मृत्यु एक सुनिश्चित और शाश्वत सत्य है। जीवन के प्रति सम्मोहन, ललक और तृष्णा स्वाभाविक है। मृत्यु से कैसा डर जब मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त समय प्राप्त हो तो उसे सहर्ष स्वीकार करें ।यही संदेश इन पंक्तियों में दिया है-
"मैं जी भर जिया ,मैं मन से मरूं
लौट कर आऊंगा ,कूच से क्यों डरूं ?.".. मौत से ठन गई।
अटल जी का आत्म विश्वास कभी नहीं डिगा। उनके प्रत्येक काव्य में महानता की सुगंध बिखरी है। धर्म व नीति व जीवन की सच्चाइयों  को अपनी अभिव्यक्ति से समाज में व्याप्त विषमताओं पर प्रहार किया है।उनकी प्रत्येक कविता अपने आप सार्थक है, समग्र है, परिपूर्ण है जो जीवन के विभिन्न मूल्य से पाठक को   साक्षात्कार करवाती हैं। निश्चित रूप से ऐसे महान व्यक्तित्व , भारत के रत्न 'अटलजी' कविता के शब्दों में तथा पाठकों के हदय में हमेशा जीवित रहेंगे।


-अर्चना त्रिवेदी उपाध्याय


 

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