वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021
वो ना हमारे करीब थे ,
ये इश्क के रिश्ते भी दोस्त अजीब थे ,
आवाज के ताने सवाल बुन रहे थे,
बवाल से बना जीवन जी रहे थे ,
यार रूठना मनाना वहम तो,,,
बस मिलने का एक बहाना था ,
हमने उम्मीदें लगाई थी उससे,,
कभी दुनिया बसाई थी जिससे,
दुनिया का खास परिंदा जाना था जिसे,
मगर यह मेरा वहम था बन गई अनजान,
भोले से मुखड़े को पहचान न सकी ,
यूं नफरत के जाल में जा फंसी ,
हमें देखकर बोला वह कौन हो तुम ?
उसके अल्फाज सुनकर
मेरा दिल फूलों की तरह बिखर गया,
जिस ख्वाब में खोई थी
मैं वह वहम मेरा टूट गया ,
आज फिर एक बार साथ उसका छूट गया,
आज फिर विश्वास टूट गया,
आज यह मन जान पाया वहम
,वहम ही होता है ,
किसे दोष दू यार जिंदगी ही एक धोखा है,
वहम तो बस इस जीवन की नौका है ,
शिवा सिंहल
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