गीतों में मैं गाता हूँ -अजय

वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021

प्रणय गीत गाया न गया।  
हम भी थे राहों में लेकिन
हमको अपनाया न गया
गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।।

हम जाने कितनी बार मिले
सुनी राहों पर साथ चले
पर अंतस के भावों को
हमसे समझाया न गया।

गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।।

हर मुश्किल में साथ रहे
सुख दुःख मिलकर साथ सहे
तुमने तो मन की कह डाली
हमसे बतलाया न गया।

गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।।

जीवन के चौसर पर हमने
हरदम दिल की बाजी खेली
इक इक मुस्कानों की खातिर
कितनी ही पीड़ाएँ झेलीं।

उल्ल्लासों के बीच रहे पर
हमसे मुस्काया न गया।
गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।।

पीड़ाओं का जीवन हमने
बस अपने गीतों में डाला
लोगों ने तो गीत सुने बस
मन के भावों को कब जाना।

मन के उन भावों को हमसे
जग को समझाया न गया।
गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।।

भले अँधेरा घना बहुत था
दीपक रोज जलाया हमने
कंठ रुँधे थे भले हमारे
दबे स्वरों में गाया हमने।

रुँधे कंठ के घावों को पर
जग को दिखलाया न गया।
गीत प्रणय के लिखे बहुत
लेकिन हमसे गाया न गया।

अजय कुमार पाण्डेय 
 हैदराबाद   
   


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