वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021
अल्हड़ नादान थी मैं
तुम माँग का सिंदूर बन कर आये
मेरे माथे पर तेरे नाम की बिंदिया सज गई
हाथो मे तेरे नाम की मेंहदी महक गई ।
हाथो में खन खन करते कंगना तेरे नाम से बज रहे ।।
धड़कन धड़कन में तेरा नाम पुकारे ।
दिल में धडक रहा मिठा मिठा एहसास पुकारे ।।
रोम रोम मेरा तेरे प्यार में डूब रहा है ।।
शर्माते गालों पर तेरे नाम की लाली पुकारे ।।
दो अजनवी थे परिणय में बंध जीवन शुरु हुआ ।
साँझ के सूरज सी माथे पर बिंदिया सजाना शुरु हुआ ।
देखते देखते पूरा संसार बन गये तुम ।
साँझ ढले तेरा इंतज़ार करना शुरु हुआ
फूल पर जैसे शबनम सजे मेरे माथे बिंदिया ।
मेरे सूने रुप को निखरती है बिंदिया ।।
बिंदिया की कहानी बडी निराली ना -ना रुप में सजे
मेरे दोनो भौंहों के बीच लग इठलाती बिंदिया ।।
लाल - हरी , पिली -नीली कई रंगो की बिंदिया ।
सरसों के ताने से लेकर चौदहवीं के चाँद सी बिंदिया ।।
हर साड़ी के साथ सजती अपना तेवर बतलाती ।
सुहागन का सम्मान कराती बिंदिया ।।।
अलका पाण्डेय - मुम्बई
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