अथ कुर्सी महात्म्य -विनोद कुमार विक्की


 

श्री श्री एक सौ सवाआठ विनोद विक्की विरचितं महाकाव्य भ्रष्टाचारमानस प्रथम अध्याये ऐश्वर्य प्रदायनी उपसर्ग खंडनाम अथ कुर्सी महात्म्य। अहं कुर्सी असि अर्थात मै कुर्सी हूँ......मै निर्जीव हूँ बेजान हूँ  लेकिन मैं युगों युगों से विद्यमान हूँ।मै काष्ठ और धातु दोनों ही रूपों में पाया जाता हूँ किंतु मेरे मूल्यांकन का मानदंड तदनुरूप ना हो कर पदनुरूप होता है। मेरे विकास और आविष्कार का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानवीय खोपड़ी में बुद्धि के विकास का।  मै कुर्सी हूँ। इतिहास साक्षी है मैंने अपने लिए अपनों को लड़ते मरते मारते देखा है।राजतंत्र से लोकतंत्र तक मेरी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मै चश्मदीद हूँ  भारत में महाभारत का।गवाह हूँ कि राजतंत्र में मुझे पाने को इच्छुक युवराज अपने पिता के गर्दन को गाजर मूली की तरह तलवार से छेप दिया करते थे अथवा पिता को आजीवन कारावास का लाइफ़टाइम पैकेज उपलब्ध करवा देते थे
हर्यक वंश(पितृहन्ता वंश) में बिम्बिसार,अजातशत्रु,उदयन आदि द्वारा मुझे पाने के लिए पिता की जबरन बलि देने की आगाज़ हुई परंपरा को बढ़ाते हुए 99 भाईयों को बिना विजा यमलोक प्रेषित कर मुझे हासिल करने वाला शासक इतिहास में महान कहलाया।
मेरे लिए ही ताजमहल के प्रोड्यूसर यूनिवर्सल आशिक शाहजहाँ मियाँ को उनके पुत्र औरंगजेब ने जेल की हवा खिला दी और सगे व सौतेले भाइयों को धूल चटा दी।मेरे मोहपाश में बंधा व्यक्ति अन्य मोह बंधन से मुक्त हो जाता है।
मैं कुर्सी हूँ .......मेरी एक खासियत है कि मेरे उपर बैठने वालों के चित्र तो बदलते है लेकिन चरित्र नहीं। वर्तमान लोकतांत्रिक परिदृश्य में मेरी महत्ता भले ही बढ़ गई हो लेकिन मुझे हासिल करने की स्थिति कमोबेश वैसी ही है।पहले लोग इंसान का ख़ून कर कर मुझे प्राप्त करते थे अब इंसानियत का खूून कर मुझे हासिल करने के जुगाड़ में है। मुझे पाने को हर कोई जद्दोजहद में है लेकिन बता दूँ कि वर्तमान में मुझे हासिल करना बहुत ही आसान है। मेरी चाहत रखने वाले अभिनय कुशल हो यह मेंडेटरी है।जात-धरम,क्षेत्र भाषा के जोड़-तोड़ पर अच्छी पकड़ हो तो मुझ तक पहुँचने का मार्ग अत्यंत सरल है।मुझे पाने के लिए लोग धर्म-जाति भाषा के आधार पर देशवासियों के साथ-साथ देश को भी बांटने से गुरेज नहीं करते।
मै कुर्सी हूँ ......मैं महान हूँ गाँव गली के वार्ड सदस्य की कुर्सी से लेकर पीएम तक की कुर्सी,हर कुर्सी की अपनी महानता है।
 मैं कुर्सी हूँ......  युगों युगों से मैने अनगिनत तशरीफ़ को बदलते देखा है साथ ही देखा है सपरिवार उनकी तकदीर को बदलते  पर जिन्होंने  मुझे सुशोभित करने के लिए उनको मुझसे रू-ब-रू करवाया उस जनता-जनार्दन की तकदीर कभी भी बदलते नहीं देखा।मैं कुर्सी हूँ......... लेकिन इनदिनों टेंशन में हूँ  मेरे चाहने वाले लोलुप दावेदार विघटनकारी तत्वों के  हरकत को देखकर। मैं भी अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित  हूँ।जिसप्रकार मुझे पाने के लिए ये लोग बाँटने-तोड़ने का खेल खेल रहे है कहीं मेरी स्थिति भी तख़्त-ए-ताऊस वाली ना हो जाए ! जाने कब किसी नादिरशाह के आकर्षण का केंद्र मैं बन जाऊँ और मुल्क़ ... ......बहरहाल उस स्थिति में भी मैं  तो रहूँगा भले ये देश........
 

 





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