जीत किसकी-मनोरमा

वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021

एकांकी

पात्र परिचय
धर्म --पिता
संतान --क्षमा ,मार्दव ,आर्जव ,सत्य ,संयम,शौच,तप त्याग ,अकिंचन ,शील
अधर्म --धर्म का भाई
संतान --क्रोध,मान,माया,लोभ,भ्रष्टाचार झूठ,चोरी,जुआ,मद्यपान,कुशील
देश -भारत
काल --वर्तमान
वातावरण --कोई भी सरकारी आफिस ,पार्टी आफिस या धरनास्थल जैसे स्थान
पौशाक --धर्म और उसके परिवार की पोशाक --पीली,केशरिया,श्वेत ,हरा, आदि रंग की।
अधर्म व उसके परिवार की पोशाक --काली ,नीली ,गहरी नीली आदि रंग की

धर्म -बेटी क्षमा ..।तुम ने अपने कर्तव्य के पालन में कोई कमी तो न की ।
क्षमा --नहीं पिता श्री। आपकी बेटी होकर मैं गलती कैसे कर सकती हूँ?
धर्म (चिंतित स्वर में )लेकिन क्रोध के आगे तुम टिकी कैसे रह सकीं?समझ न आता क्रोध का क्या करूँ ?
अधर्म (प्रवेश करते हुये ) भ्राताश्री ,आपको तो मेरे बच्चे कभी आंखों देखे न सुहाते।सदैव कमियाँ ही खोजते रहते हैं।
-धर्म -आओ भ्राता ,बैठो । तुम सदैव मेरी बात को गलत क्यों लेते हो । मेरे लिए सब बच्चे एक समान हैं। पर दुःख होता है जब तुम्हारे बच्चों का जन समुदाय के बीच  व्यवहार देखता हूँ । तत्काल  असर होता है और अक्सर नुक्सान उठाना पड़ता है ।
अधर्म (गुस्से में )भ्राता श्री ,आज मुकाबला हो ही जाए।अपने परिवार के बारे में आपके विचार सुनते सुनते थक गया हूँ।
राजसत्ता आपके पास क्या आई आप तो हमारा सर्वनाश करने पर तुल गये ।
धर्म (शांत स्वर में) भाई ,आप फिर हमें गलत समझ रहे हैं मैं कभी राजसत्ता के मद में न रहा और न मेरा परिवार राजसत्ता के सुखों का उपभोग कर रहा है।आप जानते हैं।बाकी मैं परिवार में मुकाबला उचित नहीं समझता।
अधर्म (व्यंग से हँसते हुये)हाँ ,हाँ क्यों नहीं ।आप सा महान कभी कोई हुआ है ? पर अब मैं भी चुप रहने वाला नहीं हूँ।आज मुकाबला होकर रहेगा ही।(अपने परिवार को बुलाता है।)क्रोध ,मान ,माया ..सब आ जाओ।
धर्म -तुम कभी न्याय की बात क्यों नहीं करते भाई। देखो, परिवार में मुकाबला उचित नहीं ।
अधर्म --जानता हूँ तुम डरपोक रहे हो ।इसलिए कहीं सत्ता हाथ से न निकल जाए इसलिए अपने कार्यों का ढोल पीटते रहते हो ।अपने बच्चों को भी यह कला सिखा रही है जिससे योग्यता न होने पर भी लोग उनका मान करते रहे । अब तो फैसला होजाना ही चाहिये योग्य -अयोग्य का।
क्रोध आदि ने प्रवेश करते हुये ---आपने बुलाया पिता श्री
अधर्म --हाँ , आज फैसला होना ही है।
क्रोध( बिफरते हुये )बिल्कुल ।मैं भी क्षमा मार्दव आदि से तंग आ चुका हूँ ।बुलाओ आज सबको। क्षमा ,मार्दव कहाँ हो सब ..यहाँ आओ ।(जोर से आवाज लगाते हुये)
क्षमा आदि प्रवेश करते हुये ...शांत क्रोध भाई ,शांत। आपको इतना उबलना शोभा नहीं देता।
क्रोध --तुम होती कौन हो मुझे चुप कराने वाली?
क्षमा --मैं आपकी बहन ।
क्रोध --मक्कार चालबाजों से मेरा कोई रिश्ता नहीं।
मार्दव --(शांति पूर्वक)भाई , आप बहन क्षमा से क्यों नाराज हैं ।हमेशा उखड़े रहते हैं।क्यों
मान ---ऐ सरलता की मूर्ति ।तू क्या मुकाबला कर रहा है हमारा (गर्दन अकड़ाते हुये) परे हट ..(कहते हुये मार्दव क़ धक्का देता है।वह गिर जाता है।)
क्षमा --भाई ,धैर्य धारण कीजिए।इतनी उग्रता शोभा नहीं देती। (कहते हुये मार्दव को उठाती है )उठिये भाई ।बडे भाई की बात का बुरा नहीं मानते।
(मार्दव मुस्कुरा देता है)
माया ---ओह हो ...देखो तो सही । संत महात्माओं को..
खुद ही ने अपने भाई को गिराया और नाटक तो देखो..।
क्यों लोभ भैया ...देखा है न तुम सबने भी
झूठ ,क्रोध कुशील ,असंयम सब एक साथ ---हाँ ,हाँ ...मार्दव स्वयं को बहुत सीधा समझता है।ढोंग तो देखो..
धर्म ---बच्चों ..ये क्या कर रहे हो? कम से कम ये तो सोचो कि आखिर यह सब किसलिए ।किस दिशा में जा रहे हो?
क्रोध ..तात श्री ..आप तो चुप ही रहिये ।
अधर्म --सही कहा बच्चों ....भ्राता श्री के कारण ही ये सब सर पर चढ़े हैं ।आज इन्हें सबक सिखाना ही होगा।
क्षमा -- क्रोध ,मान भाई और माया बहन ।आप सब की गल्तियों को क्षमा करते हुये मैं सबकी तरफ से क्षमा चाहती हूँ अगर आपको हमारे कारण दुख पहुँचा ।हमें न राज सत्ता का मोह है न लालच। हम जनसेवा करते और ,परपीडन दुख से व्यथित अवश्य होते हैं।उस पर आप सभी हमारे भाई बहन होकर भी जनमन को अपनी आदतों ,व्यवहार से चोट पहुँचाते हो ।वह हम देख नहीं सकते। सँभल जाइये अभी वक्त है ।वर्ना वक्त स्वयं बलवान है ।चलो भाई बहनों ..(कहते हुये क्षमा , अपने परिवार के साथ चली जाती है।)
धर्म खड़े होकर---कल्याण हो आप सबका । सद्बुद्धि प्राप्त हो (कह कर चले जाते हैं।)
अधर्म अपने परिवार के साथ जोर जोर से अट्टहास करने लगता है।

(पर्दा गिरता है।)
मनोरमा जैन 'पाखी'

 


 

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