रीतु की घटना

वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021

बाजार से लौटते समय अचानक उसके कदम थम से ,उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक बूढ़ी   औरत ठंड से कांप रही थी। ठंड से उसके दांत आपस में टकराकर कट,कट की आवाज कर रहे थे। रास्ते में एक झोपड़ी के सामने आग जलाकर बैठी थी।तन पर एक भी ठंडे के कपड़े नहीं थे। धीरे-धीरे आग बुझ रही थी। उसे देखकर उसे दया आ गयी।उसने उसे अपनी शाल उसे ओढा दिया।आग भी सुलगा दी। बातचीत से ज्ञात हुआ कि उसके बेटे-बहु तोह उसे घर से निकाल दिए हैं।किसी तरह अपना गुजारा करती है।वह आग सुलगा कर घर की ओर चल दी।उसने घर आकर सारी बात मां-पापा को बतायी।
       अगले दिन वह अपने मां-पापा के साथ बूढी औरत  से मिलने आयी। उन्होंने उस औरत को खाने की सामग्री , स्वेटर,कंबल और कुछ रूपये दिए। तत्पश्चात उससे आशीर्वाद लेकर वह माता-पिता संग घर की ओर प्रस्थान किया।वह रास्ते भर सोचती रही "क्या संतान इतने निर्दयी ,स्वार्थी होते हैं। आखिर क्यों बुढ़ापे का सहारा नहीं बनते?"इस तरह के अनेक सवाल उसके दिमाग में कौंध रहे थे।

       रीतु प्रज्ञा

     दरभंगा, बिहार
   स्वरचित एवं अप्रकाशित

 


 

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