मेरा वहम- डॉ अंजु

 वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021

जीवन-पथ पर गतिशील रहा-
ये मेरा मानव तन और मन,
जाने क्यों वहम रहा मुझको-
सुखमय ही होता है जीवन.

जब जन्मी मैं,मां तड़पी थी-
प्रसव-वेदना पीर सही,
मैं मान रही थी मन ही मन-
बेटी ही हर गम झेल रही.

भैया जन्मा तो ढोल बजे-
घर में दीखे सब सजे धजे,
मैं समझी हर्ष अपार मिला-
छीने जिद्दी ने सभी मजे.

बेटी से बेटा होए भला-
ये वहम दूर तक नहीं चला,
मां अबला नारी लगती थीं-
पर उनसे ही घर चल निकला.



डा अंजु लता सिंह 'प्रियम'
नई दिल्ली 

 


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