वर्ष-3 अंक -1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
न जाने कैसे घासीराम के दिल में बाला जी के प्रति आस्था और विश्वास उत्पन्न हो गया था।गाँव में रहते हुए उसे बरसों हो गए थे।बचपन में शाला में उसे अलग बैठाया जाता, प्यास लगने पर दूसरे विद्यार्थी उसे पानी पिलाते थे क्योंकि उसे हैंडपंप छूने या प्याऊ पर जाने का अधिकार नहीं था।विद्यालय में वह अलग बैठ कर खाना खाता था।मां बापू का गाँव वालों द्वारा किया गया तिरस्कार तो वह आये दिन देखता ही रहता थाऔर बड़ी मासूमियत से मां से पूछता मां गांव वाले तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?मां आंखों में आये आंसू छिपा कर कहती बेटा!हम दलित हैं इसलिए।परन्तु फिर भी घासीराम को यह विश्वास था कि एक न एक दिन बाला जी हमारी स्थिति ठीक कर देंगे।स्कूल से लौटते समय बालाजी के मंदिर के आगे एक कोने में खड़े होकर हाथ जोड़ना उसका नित नेम था।मंदिर के अंदर तो वह जा नहीं सकता था पर अपना मंदिर कभी बनवाने की उसकी प्रबल इच्छा थी।समय बीता, धीरे धीरे वह प्रौढ़ता की ओर बढ़ता गया साथ ही भवन निर्माण का काम करते करते वह भवन निर्माण कला में पारंगत हो गया।अब उसने सोच लिया कि मैं अपनी ही झोंपड़ीके चबूतरे पर बालाजी की मूर्ति स्थापित करके मंदिर अवश्य बनाऊंगा।
..मजदूरी से मिले पैसों से अंशदान निकाल कर एकत्रित करना शुरू किया।धीरे धीरे मंदिर बनाने जितनी धन राशि उसने एकत्रित कर ली।शेष मूर्ति आदि के लिए उसने गाँव के महाजन से मुंह मांगी ब्याज दर पर उधार ले लिया और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया।शहर जाकर मूर्ति भी ले आया और ऊंची दक्षिणा का प्रलोभन देकर एक पंडित भी, गाँव वालों के बहिष्कार और धमकियों के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और गांव के दलितों को इकट्ठा कर मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा का काम सम्पन्न कर दिया।यद्यपि घासीराम ने बादलमें थेगली लगाने का काम तो करलिया था परंतु इस कार्य से ऊंची जाति की बौखलाहट बढ़ गई।उन्होंने मंदिर की तोड़ फोड़ करना और घासीराम के परिवार जनोंको सताना शुरू कर दिया।घासीराम परिवार सहित कलक्टर कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गया।राजनीति सक्रिय हो गई।पक्ष-विपक्ष, स्थानीय मीडिया, मानवाधिकार कार्यकर्ता और दलित समाज के कार्यकर्ताओं ने अपने अपने तेवर दिखाए।अंततः प्रशासन को पांच पुलिस कर्मी घासीराम की सुरक्षा के लिए लगाने पड़े।परंतु राजनीति ने फिर पलटी खाई और सुरक्षा हटा ली गई।और एक दिन21वीं सदी का यह एकलव्य बादलों में थेगली लगाने के बाद हार कर गाँव छोड़ कर न जाने कहाँ चला गया।
स्वरचित लघुकथा
.लीला कृपलानी(जोधपुर)
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