बाजार - अतुल त्रिवेदी

वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021

 

औह, मेरी आंखें पथरा सी गई है, दिल रो-रोकर टूट गया है, बिखर गया है। उम्र बितती जा रही है। झुर्रियों पर झुर्रियां आ गई है। क्या-क्या नहीं देखा  मैंने, क्या-क्या...... हे ईश्वर मुझे माफ करना हालांकि मैं इस लायक नहीं हूं, मेरी मजबूरी को समझ, मेरे पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं ,मै बचा नहीं सकता किसी को ,लेकिन सोच सकता हूं ,प्रार्थना कर सकता हूं जो मैंने हमेशा की। कब खत्म होगा यह खेल? क्या कोई चमत्कार होगा ? इसी का इंतजार है।
शहर की तंग गलियों में मैं बाजार हूं ,सजने की तैयारी होने लगी है यहां शाम ढलते ही लोगों की आवा - जाही ,भीड़ - भाड़ का माहौल हो जाता है फूल वाले   मोगरे के फूल लेकर साथ में पनवाड़ी के यहां से  पान  लगवा कर ले जाते गली के रास्ते, कुछ पुराने मकान, कुछ नए  आमने-सामने महिलाओं का जमावड़ा जो लोगों को आकर्षित करता है ।यहां पर लोग कुछ परेशान  व कुछ अपनी इच्छा से  आते हैं, जो यहां आकर सुकून पाते हैं ,ऐसी सोच है।रोज  महफिल सजती ,लोग यहां मदिरा पीते और संगीत भी सुनते हैं तथा नृत्य का आनंद भी लेते हैं लेकिन आजकल यहां पर अपराधिक प्रवृत्ति के लोग महिलाओं से गलत काम भी करवा कर वसूली करते हैं। यहां पर मजबूर युवतियों को जबरदस्ती लाकर  सौदा करते है।ओ, भगवान ,..........काश ,मेरी उम्र यही खत्म हो ।  इसमें अधिकतर लोग  व्यवसायिक , राजनीतिक तथा नौजवानो की भरमार रहती   है जो पैसा देकर कुछ भी करने का दम भरते हैं। यह सब हर जगह होता है ।डर सभी को होता  है,घर, समाज आदि। इज्जत के‌ डर से महिलाएं कुछ भी नहीं कहती ,सब सहन करते हैं क्योंकि  कुछ ताकतवर लोग है जो कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं ।समाज भी आॅखे बन्द कर बैठा है । लोगों का नजरिया भी पहले  जैसा नहीं रहा अब उसमें बहुत तब्दीली हो गई हैं ।इन महिलाओं को छुटकारा मिलेगा? जैसे फिल्मों में चमत्कार हो जाता है यहां पर भी नवयुवा कोई ऐसा कदम उठाएंगे? जो अपने लोगों की गुलामी कर रहे हैं उनसे स्वतंत्रता मिल पाएगी? हम स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं लेकिन स्वतंत्र जीवन कहां जी रहे? इंतजार है नए क्रांतिकारियों का जो मेरे इस 'बाजार' की ऐसी रौनक हटा दे. और इन महिलाओं के पुनर्वास और दैनिक कार्यों की व्यवस्था कर दें ताकि ‌ये खुशी खुशी रह सके तथा इनके परिवार का निर्वहन कर सके और बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलती रहे वरना यह भी उसी गंदगी में रहकर अपना जीवन व्यतीत करेंगे।  मेरी आंखें यह सपना देख रही थी कि कुछ लोग जिज्ञासा वश पूछ रहे थे," ये वही बाजार है ना...".....?

 

1018 आबकारी परिसर जिंसी जहांगीराबाद भोपाल 462008


 

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