भारतवर्ष जो ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। इस देश को कई नामों से जाना जाता है। इस धरा पर अनेक महापुरुषों आचार्यों ने जन्म लिया है। वर्धमान भगवान महावीर तथा भगवान महात्मा बुध जो कि लोगों को अहिंसा पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं ।तो इसी धरा पर प्रकट होते हैं ।आचार्य चाणक्य (विष्णु दत्त शर्मा) जो अपने विचारों से इतिहास और शासन की व्यवस्था ही बदल देते हैं। कहा जाता है शिक्षक साधारण नहीं होता प्रलय व निर्माण उसकी गोद में खेलते हैं ।और हमारे पालकों की सर्वप्रथम शिक्षक तो उसके अभिभावक ही होते हैं। अभिभावक जैसा चाहे वैसा ही अपने बालकों का भविष्य बना सकते हैं।
एक बालक का भविष्य कैसा होगा उसके अभिभावक की परवरिश पर निर्भर करता है ।कहते हैं मां बच्चे की प्रथम शिक्षक होती है। पर आज के परिवेश में मां के साथ पिता की भी भूमिका बहुत अहम हो गई है । हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा बच्चे के लालन-पालन में व्यतीत हो जाता है। जो बच्चों की बुद्धि का विकास करते हैं ।
बच्चे अपने माता-पिता का अक्स होते हैं । जो व्यवहार हम करते हैं उसकी छवि हमें अपने बच्चों में साफ देखने को मिलती है। हमारे बच्चों का बहुर्मुखी विकास हो। इसके लिए हमें निम्न बातों पर विचार विमर्श करना होगा ।
१-सर्वप्रथम तो हमारा व्यवहार परिवार के अन्य सदस्यों के साथ प्रेम पूर्वक व धैर्य पूर्वक होना चाहिए ।अगर परिवार सिंगल है, तो कम से कम पति पत्नी को आपस में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाए रखना चाहिए। क्योंकि बच्चा अपने आसपास जो दिखता है। वही अपने व्यक्तित्व में भी उतारता है।
२-हमें अपने बड़े होते बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श की पहचान करानी चाहिए। जिससे वो भी घर के बाहर खुद की सुरक्षा कर सकें। या गलत लोगों के संपर्क में आने से बच सकें।
३-हमारी बातों में करनी और कथनी में अंतर नहीं होना चाहिए। क्योंकि इससे बच्चे सच और झूठ के बीच अंतर करना नहीं सीख पाते। या यूं कह लें वह सही और गलत का मूल्यांकन नहीं कर पाते।
४-प्रत्येक अभिभावक को चाहिए कि वे अपने बच्चों में तार्किकता का समावेश करें ।जिससे की वे हर बात को तर्क के आधार पर जांच परख कर ही माने, ना कि अंधविश्वास की खाई में गिर कर अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर पाए।
५-साहस और निडरता दो ऐसे गुण हैं। जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिमार्जित करते हैं ।अतः अभिभावकों को चाहिए कि इन गुणों का समावेश धैर्यता के साथ अपने बच्चों में करें ।जिससे कि उनके बौद्धिक विकास में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न हो सके।
६-हमें अपने बच्चों पर अपनी मर्जी जरूर से ज्यादा नहीं थोपनी चाहिए । उन्हें शुरू से ही छोटी-छोटी जिम्मेदारी सौंपने चाहिए। जिससे आगे चलकर वे बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाहन समझदारी व चतुरता से कर सके। जैसे- घर की छोटी-छोटी जिम्मेदारी उनको देनी चाहिए। कार्य पूर्ण होने पर उनका मूल्यांकन भी करना चाहिए। और उन्हें पुरस्कृत भी करना चाहिए।
७-शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें आगे चलकर किन विषयों का चुनाव करना है इसका निर्णय भी बच्चों पर ही छोड़ना चाहिए । हां पर उन्हें हर बात की उचित और अनुचित जानकारी उपलब्ध कराने में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करना एक अभिभावक की बड़ी जिम्मेदारी होती है।
८-परीक्षा के समय पर अभिभावकों को चाहिए कि परीक्षा की तैयारी किस्तों में करानी चाहिए जैसे - कठिन विषयों को पहले और सरल विषयों को अंत में, जिस से कठिन विषयों को विशेष रुप से समय मिल पाए।
अंत में एक बात -हमें अपने बच्चों को समय-समय पर यह एहसास दिलाते रहना चाहिए कि वह हमारे लिए अनमोल है ।वह हमारे लिए ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य तोहफा है ।जिसके बिना हम अधूरे हैं ।ऐसे अभिभावक और बच्चों के बीच सामंजस्य से बना रहता है। और एक खूबसूरत रिश्ता बना रहता है। जो बच्चों के मानसिक व बौद्धिक विकास के लिए अभिभावक और बच्चों के बीच सेतु का कार्य करते
नीरज मिश्रा शुक्ला
उरई ,जालौन,
उत्तर प्रदेश
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