वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021
जब मेरा अंकुर,
प्रस्फुटित होने को आया,
तो उसने भ्रूण कत्ल मेरा करवाया।
मेरे जन्म दिवस के अवसर पर,
उसने शोक मनाया।
कभी दहेज की अग्नि में मुझे जलाया,
तो कभी ,वासना का शिकार बनाया।
जब इससे भी जी ना भरा ,
तो तेज़ाब से नहलाया।
जाने क्यों... ? उसने ढाये,
मुझ पर ,इतने जुल्म -सितम।
इसलिए ,कि मैं एक लड़की हूँ?
क्या मैं एक लड़की हूँ इसलिए... !
लेकिन,वो ये कैसे भूल गया,
मैं ही तो जन्मदात्री थी।
कभी बहन बनकर ,प्यार लुटाया।
तो भार्या बनकर ,संग निभाया,
प्रेमिका बनकर प्रेम का शामियाना बनाया
फ़िर कैसे ये भूल गया... ?
वो कैसे ये भूल गया... ?
लगती थी पहले मैं भी कोई
जन्नत की हूर,
चांद भी शर्माता था,देख कर मेरे चेहरे का वो नूर।
होठों पर मेरे खिले रहते थे गुलाब,
नयनों से मेरे छलकती थी शराब।
मैं भी थी किसी की वेलेन्टाइन,
था मेरा भी, कोई लाइफटाइम।
अब मैं हूँ ,एक दुर्दश मूरत ,
अब है ,मेरी विद्रूप सूरत।
क्या कोई अब मेरे,
पावन मन को पूजेगा?
क्या कोई अब मुझको ,
अपने प्रणय- सूत्र में बाँधेगा?
क्या कोई अब ,मुझे अपना
वेलेन्टाइन बनाएगा... ??
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एकता कुमारी, बेलहर बॉंका बिहार
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