वर्ष-:3 अंक -: 1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
हे! हंसवाहिनी,माँ सरस्वती,
हे! विद्यादायिनी माँ भगवती।
सुन लो मेरी पुकार,
आए हैं माँ हम तेरे द्वार...
मैं मूरख बालक अज्ञानी,
कर दो मेरा बेड़ापार...
हे! माँ सुन लो मेरी पुकार....
हे! ब्रह्मचारिणी माँ जगती ,
हे! सुवासिनी माँ भारती,।
सुन लो मेरी पुकार,
आए हैं माँ हम तेरे द्वार...
तुम हो माँ सिद्धि दाता,
तुम हो भाग्य विधाता।
विद्या की भिक्षा देकर,
मुझ पर करो उपकार
हे! माँ सुन लो...
हे! भुवनेश्वरी माँ श्वेतवसना
हे! वागीश्वरी माँ निरंजना।
सुन लो मेरी पुकार,
आए हैं माँ हम तेरे द्वार...
एक हाथ में वीणा सोहे,
दूजे हाथ में पुस्तक साजे।
सारा जग तेरी महिमा गाए,
हे! मां, मेरा भी कर दो उद्धार...
हे! माँ सुन लो...
हे! शास्त्ररूपिणी माँ शारदे,
हे! पद्मलोचना माँ शारदे।
सुन लो मेरी पुकार,
आए हैं माँ हम तेरे द्वार...
तेरे दर पे असुर भी बने ज्ञानी..
धरा गगन गूंजे तेरी महिमा की कहानी,
इतनी सद्बुद्धि दो मुझे माँ,
हम बने नहीं कभी अभिमानी...
तेरी आरती उतारे माँ, ये संसार...
हे! माँ सुन लो...
एकता कुमारी
बेलहर, बॉंका, बिहार
सदा आंखों में बस जाऊं,
दिल से नहीं निकल पाऊं।
हाल बिगाडा है तूने मेरा,
निर्मोही,ये मैं कैसे बताऊं
मैं मांग में सिंदूर सजाऊं,
सुहाग की बिंदिया लगाऊं।
मन के दर्पण में तुझे देखूं,
रातों में चूडिय़ां खनकाऊं।
तेरे लिए ज़माने से टकराऊं,
यमराज से भी मैं लड जाऊँ।
इतने मगरूर ना बनो बेदर्दी,
फ़ूलों से तेरी सेज सज़ाऊं।
नैनों से तुमको जाम पिलाऊं,
लिपटकर तुझपे प्यार लुटाऊं।
क्या तुम अब भी रूठे रहोगे,
तुम ही बताओ कैसे मैं मनाऊँ।
एकता कुमारी
बेलहर, बॉंका, बिहार
चारों तरफ बज रही,
प्रेम की शहनाई थी।
निहत्थे सुप्त सैनिकों पर ,
जिसने गोली बरसायी थी।
प्रेम दिवस को जिसने,
शोक दिवस बनाया था।
खिलखिलाते आँगन को,
लहूलुहान जिसने किया ।
भारत माता की कोख को,
जिसने सूना कर दिया।
मेरी रंगीन दुनियाँ को ,
जिसने रंगहीन बनाया ।
माँ भारती के आरती में,
जान देकर अपना तन,
तिरंगे मे लिपटाया।
तब माँ भारती के बेटों ने ,
अपना रंग दिखाया।
दुश्मन के आँगन में जाकर,
तांडव नृत्य रचाया।
था वो दिन 26 फरवरी मंगलवार का ,
हनुमान बन कर जब उसकी लंका में,
आग लगाने आया।
थर्राने लगा दुश्मन,
और युद्ध विराम फ़रमाया।
हमने तेरे चरणों की,
हे!माँ ले ली है कसम।
जान से भी प्यारा है,
मुझको मेरा महबूब वतन।
जो काम शहीदों के रह गए अधूरे।
उस काम को माँ अब हम करेंगे पूरे।
40 सिर के बदले हम,
असंख्य मुंड काटकर लायेंगे।
धारण कर चूड़ी और सिंदूर,
रणचंडी बन कर जायेंगे।
खींच कर दुश्मन को घर से ,
सीने पर गोली मार गिराएंगे।
तब रोज़ हम प्रेम और खुशी का त्योहार मनायेंगे।
मेरा महबूब सनम मेरा हिंदुस्तान है।
मेरा वेलेन्टाइन,
मेरा अमर वीर जवान है।
हे वीरो ! तुझको मेरा सलाम।
भारत के वीर सपूतो!
तुझको,शत् -शत् प्रणाम ।................................
एकता कुमारी
एकता कुमारी
बेलहर, बॉंका, बिहार
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