वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021
आज सुबह से मेरे बगीचे पर कुछ लड़के लडकियां गेट खोलने को आवाजें दे रहे थे |जैसे ही मैंने गेट खोला वो लडके लडकियां मेरी क्यारियों में लगे गुलाब के पौधों की तरफ दौडे़ और एक एक गुलाब को पकड़ पकड़कर देखने लगे मैंने उन्हें तुरंत टोका
" रुको ! तुम सब रुको .
सभी मेरी तरफ देख कर बोले क्यों क्या हुआ ?
मैंने कहा तुम लोग ये गुलाब के फूलों को क्यूँ छेड़ रहे हो...,
अरे ! तुम्हें नहीं पता आज रोज़ डे है ?
तो...
हम ये फूल लेने आयें हैं
नहीं ! मैं फूल नहीं तोड़ने दूंगी |
लडकियां बोलीं
क्या हो जायेगा थोडे़ से फूल तोड़ लेंगे तो ! आज तो बाज़ार में भी बहुत महंगे दामों में मिल रहा है |
तो वहीं से खरीद लो ना...
अब बात बात में बात इतनी बढ़ गई कि मेरा उनसे झगड़ा हो गया |
एक बोली " बड़ी आई फूल वाली "
दूसरे ने कहा " अचार डालेगी इनका "
मैं भी अपनी बात पर अडी रही " क्या करोगे इन फूलों को तोडकर ! पाश्चात्य संस्कृति के इस बेतुके दिन में अंग्रेजी के गिटपिट गिटपिट करोगे और फिर तोड़ मरोड़ कर फेंक दोगे !?
एक बोला तुम अपनी पूजा पाठ के लिए भी तो तोड़ती हो.... |
हाँ तोडती हूँ ! मात्र एक फूल तोडकर सभी के हित की भावना से प्रभु जी के चरणों में समर्पित कर देती हूँ |
इसी तरह बहस ज्यादा होने पर जब उन्हें लगा कि अब फूलों को तोडना तो दूर हाथ भी नहीं लगाने दूंगी तो वे मुझे कोसते हुए मुंह बनाकर चले गए |
मैंने भी निर्णय लिया कि यह रोज़ डे ( गुलाब दिवस ) मैं रोज़ मनाऊंगी.... लेकिन इन्हें पौधों से अलग कर के नहीं... |
मैंने देखा सारे क्यारियों के पौधों पर अनगिनत गुलाब के गुच्छे हवा में झूम रहे थे खिलखिला रहे थे मेरा मन बहुत खुश था |
उनकी रंगत देखकर यूँ लगा मानों वें कह रहे हों
" रोज़ डे ( गुलाब दिवस ) हमने भी मनाया |
संतोष शर्मा " शान "
हाथरस ( उ. प्र. )
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