ख़ामोशी -अलका

वर्ष 3 अंक 1 जनवरी से मार्च 2021

एक तुम हो,
शिकवा करते रहते हो
एक हम हैं खामोशी से सब सहते है ।।
एक तुम हो ...
दिनभर आंफिस में  रहते हो,
एक हम हैं,..
दिन भर तेरी गृहस्थी सहजते
तेरी राह तकते है।।
एक तुम हो..
पैग पीकर पलट कर
सो जाते हो,
एक हम हैं..
तेरे जगने का इंतजार करते  हैं।।
एक तुम हो..
मन की बात ग़ुस्सा जता कर
सब कुछ कह देते हो,
एक हम हैं,
आंखों से मन का दर्द
बयां करते हैं।।
एक तुम हो..
आसमान के चांद को पाने की बातें करते हो।
एक हम हैं..
आसमान के तारो से बतियाते रहते हैं।।
एक तुम हो..
पायल , चूड़ी की झंकार भी नहीं नहीं समझते ।
एक हम हैं..
खामोशी भरी आहट भी सुन लेते हैं।।
एक तुम हो ..
सिर्फ़ अपनी परवाह करते हो
एक हम हैं तुम्हारे परिवार को
बिखरने नहीं देते ।।
एक तुम हो ..
दोस्तों के संग मौज करते हो
एक हम हैं
तुम्हारे अपनों के साथ
जन्म दिन मनाते है । ।
एक तुम हो ..
बेपरवाह से
एक हम हैं ..
सबकी परवाह में पागल ।।
एक तुम हो ..
मेरी फ़िक्र करते हो पर कहतें नहीं
एक मैं हूँ
सारा दिन दिखाती ही रहती हूँ
कि फ़िक्र कितनी है ।।
मेरी ख़ामोशी से सब सहने की आदत ।
क्या तुम्हें कभी झंकझोरती  नही ..? 


डॉ अलका पाण्डेय, मुम्‍बई। 


 

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