मैं धरा हूं-मीना अरोड़ा

  वर्ष-:3 अंक -: 1 जनवरी 2021 से मार्च 2021
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तुम मेरे हो
जब तुमने
यह मुझसे कहा
उस दिन
तन मन झूम उठा
जिस ओर देखा
मैंने यह महसूस किया
सारी कायनात मुस्कुरा रही है
मुझे तुमसे प्रीत
 करने को उकसा रही है
मैंने प्रकृति के उस
सहयोग का आभार किया
तुम्हारे भेजे निमंत्रण को
 सहर्ष स्वीकार किया
पर तुम्हें बताना भूल गई
और तुम मुझे बताना
भूल गए कि
तुम मौसम हो
बदल जाओगे
ज्यादा समय तक
एक से न रह पाओगे
नैन मेरे झरने लगे
नदी नाले सब भरने लगे
फिर धीरे-धीरे
सब सूख गया
जो आया वो चला गया
अब तो वृक्ष सी काया के
पत्ते भी पीले हो चले
तोड़ने को मचल रहे
हवा के झोंके
निर्मोही पथरीले हो चले
तुम बसंत से सावन हुए
फिर झाड़ प्रेम
बर्फ सी रात हुए
उस सर्द एहसास में
एक सदा भी जम गई
जो मुझसे कहती थी
तुम मेरे हो
सुनो
 मैं अपनी तपिश से
 बर्फ पिघला सकती हूं
मैं फिर से बसंत ला सकती हूं
मैं धरा हूं
सब सह कर मुस्कुरा सकती हूं।।

मीना अरोड़ा

हल्‍द्वानी, उत्‍तर प्रदेश 


 

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1 टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
बहुत सुन्दर लिखा है