इनके दल से निकले हैं तो,
उनके दल में मिल जाते हैं।
सत्ता के दुखियारे दुर्दिन,
अपनी ही कब्र बनाते हैं।
मौका पाने को दल बदलें,
कैसे उस दल में मिलना है।
किन किनको हमको चुनना है,
यह हमको ही तय करना है।
ठगे - ठगे से देख रहे हैं,
सत्ता में आते जाते हैं।
सदन ये खण्डित हो रहा है,
कुछ मतभेदी दीवारों से।
गुंंजित करे कुंठित इरादे,
सदनों में कौमी नारों से।
आजादी की मांग उठाने,
किस्से बनवाये जाते हैं।
समता ममता और विसमता,
घनघोर घटा की घाटी में।
जहर इतना क्यों बो रहे हैं,
पवित्र पावन सी माटी में।
तस्कर पामर नाट्य नटी,
सब दिल से दिल मिल जाते हैं।
समदर्शी उनको चीन लगे,
पाक को नापाक बोलेंगे।
बोली उनकी भोली लगती,
भोले बाबा से तौलेंगे।
चुटिया काट रहे हैं बंदर,
जयकारा करते जाते हैं।
डॉ रामकुमार चतुर्वेदी
सिवनी मध्यप्रदेश
0 टिप्पणियाँ